शुक्ल पक्ष की एकादशी कल,पुत्रदा एकादशी पर पढ़ें यह व्रत कथा

पौष शुक्ल एकादशी को वैकुंठ एकादशी कहते हैं

Update: 2022-01-12 02:20 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पौष मास (Paush Month) के शुक्ल पक्ष की एकादशी कल 13 जनवरी दिन गुरुवार को है. इस दिन पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा होती है. पौष शुक्ल एकादशी को वैकुंठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi 2022) भी कहते हैं. जो लोग पुत्रदा एकादशी व्रत रखेंगे, उनको भगवान विष्णु की पूजा के समय पुत्रदा एकादशी व्रत कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिए. इसके बिना व्रत पूरा नहीं होता है और न ही व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है. जिस प्रकार से व्रत का पारण आवश्यक है, वैसे ही पुत्रदा एकादशी व्रत कथा का श्रवण भी जरूरी होता है. आइए जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा क्या बताई थी.

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय में भद्रावती राज्य का राजा सुकेतुमान था. उसका विवाह शैव्या नाम की राजकुमारी से हुआ था. उसके राज्य में हर प्रकार की सुख, सुविधा और वैभव था. उसकी प्रजा भी खुश थे. विवाह के काफी समय व्यतीत हो जाने के बाद भी सुकेतुमान की कोई संतान नहीं हुई. इस वजह से पति और पत्नी काफी दुखी और चिंतित रहते थे.
राजा सुकेतुमान को इस बात की चिंता थी कि उनका पुत्र नहीं है, तो फिर उनका पिंडदान कौन करेगा. इन सबसे राजा का मन इतना व्यथित हो गया कि वह खुद के ही प्राण लेने की सोचने लगा. हालांकि उसने ऐसा कदम नहीं उठाया. राजकाज से भी उसका मन उचट गया. ऐसे में वह एक दिन वन की ओर प्रस्थान कर गया.
राजा चलते चलते एक तालाब के ​किनारे पहुंच गया. वह दुखी मन से वहां बैठा हुआ था. तभी उसे कुछ दूरी पर एक आश्रम​ दिखाई दिया. वह उस आश्रम में गया. वहां उसने सभी ऋषियों को प्रणाम किया. तब ऋषियों ने उससे इस वन में आने का कारण पूछा. तब राजा ने अपने दुख का कारण बताया. ऋषि ने राजा सुकेतुमान से कहा कि संतान प्राप्ति के लिए उनको पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक रखना होगा. ऋषि ने पुत्रदा एकादशी व्रत की महिमा का वर्णन किया.
अपनी समस्या का हल पाकर राजा वहां से खुश होकर वापस अपने महल में आ गया. फिर पुत्रदा एकादशी का व्रत आने पर राजा और पत्नी ने व्रत रखा और विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा की. पुत्रदा एकादशी के व्रत नियमों का पालन किया. इसके फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं और फिर राजा को एक पुत्र प्राप्त हुआ. इस प्रकार से जो भी पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है


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