क्या सावन पुत्रदा एकादशी से होती है पुत्र प्राप्ति, श्रीकृष्ण ने बताई व्रत की महत्ता

Update: 2023-08-25 16:28 GMT
धर्म अध्यात्म: सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत 27 अगस्त रविवार को है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को विधिपूर्वक करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और पुत्र रत्न प्रदान करते हैं. धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि सावन के शुक्ल पक्ष की एकादशी को क्या कहते हैं? इस व्रत की विधि और महत्व के बारे में बताएं. तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि इस एकादशी को सावन पुत्रदा एकादशी के नाम से जानते हैं. जो व्यक्ति सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा को सुनता है, उसे वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है. इस व्रत की महत्ता को जानने के लिए सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा को सुनें.
सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा क्या है?
द्वापर युग में राजा महीजित का महिष्मति नगर पर शासन था. उसे राजपाट में अरूचि हो गई थी क्योंकि उसे कोई पुत्र नहीं था. राजा महीजित का मनना था कि यदि पुत्र न हो तो पृथ्वी और स्वर्ग दोनों ही लोक कष्टकारी होता है. राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए कई उपाय किए, लेकिन सफलता नहीं मिली. इससे वह और भी दुखी हो गया.
एक ​दिन उसने सभा बुलाई, जिसमें मंत्री, प्रजा, पुरोहित आदि सभी शामिल थे. राजा ने सभी से कहा कि उसने पूरे जीवन लोगों की सेवा की. प्रजा को संतान की तरह पाला. किसी से सौतेला व्यवहार नहीं किया. दान और पुण्य कार्य में भी कभी कोई कमी नहीं रखी. लेकिन उसके बाद भी कष्टपूर्ण जीवन जीना पड़ रहा है. आज तक कोई पुत्र नहीं हुआ. संतान सुख से वंचित रहा. इसकी वजह क्या है?
राजा के इस प्रश्न का जवाब पाने के लिए प्रजा और मंत्री गण जंगल में गए, ऋषि और मुनियों के आश्रम में जाकर राजा महीजित के कष्ट को दूर करने का उपाय पूछते. ऐसे ही एक दिन वे लोमश ऋषि के आश्रम में पहुंचे. उन्होंने लोमश ऋषि को प्रणाम किया और आने का कारण बताया.
उन सभी लोगों ने लोमश ऋषि से राजा महीजित के दुख को दूर करने और उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति का उपाय बताने का अनुरोध किया. लोमश ऋषि ने कुछ देर के लिए अपनी दोनों आंखें बंद कर दी. फिर आंखें खोली और बताया कि राजा महीजित पूर्वजन्म में एक निर्धन वैश्य था. उसने धन की लालशा में कई बुरे कर्म किए. एक बार वह दो दिन तक भूखा-प्यासा रहा. फिर एक तालाब के पास गया, वहां एक गाय पानी पी रही थी, उसे भगाकर खुद पानी पीने लगा. उसके इस पाप कर्म के कारण इस जन्म में यह दुख भोगना पड़ रहा है.
लोमश ऋषि ने उन लोगों से कहा कि सावन के शुक्ल पक्ष की एकादशी आने वाली है. उस दिन तुम सब व्रत रखो, विधिपूर्वक पूजा पाठ करो और रात्रि जागरण करो. इससे तुम्हारे राजा का पाप नष्ट हो जाएगा और उसे पुत्र की प्राप्ति होगी. लोमश ऋषि के इस उपाय को जानकर सभी लोग वापस नगर लौट आए.
सावन शुक्ल एकादशी को सभी मंत्रियों और प्रजा ने लोमश ऋषि की बताई विधि के अनुसार ही व्रत रखा, पूजा की और रात्रि जागरण किया. उसके बाद द्वादशी तिथि को सभी ने उस एकादशी व्रत के पुण्य फल को राजा म​हीजित को दान कर दिया. उस व्रत के पुण्य फल से रानी गर्भवती हो गईं. बाद में उन्होंने एक गुणवान पुत्र को जन्म दिया. इस वजह से सावन शुक्ल एकादशी को सावन पुत्रदा एकादशी कहते हैं.
जो व्यक्ति सावन पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा को सुनता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. वह पृथ्वी पर सुख भोगता है और मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक में स्थान पाता है.
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