11 दिन तक लगातार कर लें हनुमान जी से जुड़ा ये काम, हर मनोकामना पूरी होने की है गारंटी

Update: 2023-07-26 17:48 GMT
धर्म अध्यात्म: ज्योतिष शास्त्र में मंगलवार का दिन भगवान हनुमान की पूजा-पाठ और उपासना का दिन बताया गया है. कहते हैं इस दिन किए गए कुछ खास उपाय व्यक्ति के जीवन से दुखों का नाश करते हैं. साथ ही, लंबे समय से अधूरी मनोकामनाएं भी बजरंगबली पूर्ण करते हैं. मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ने का विशेष महत्व बताया गया है. अगर आपकी भी ऐसी ही कोई मनोकामना है, जो आप पूरी करना चाहते हैं, तो हनुमान चालीसा का पाठ विधि पूर्वक करने से विशेष लाभ होता है और व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
हनुमान चालीसा पाठ की सही विधि
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नानादि से निवृत्त हो हनुमान जी की तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद एक थाली में फल और फूल की स्थापना करें. इसके बाद अपनी अधूरी मनोकामना या इच्छा हाथ जोड़कर हनुमान जी के आगे दोहराएं. इसके बाद 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें.
- इसके साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि हनुमान चालीसा की अंतिम चौपाई में संत तुलसीदास की जगह अपना नाम लें.
- कहते हैं कि इस उपाय को करते समय अपना नाम लेंगे, तो आपके सभी काम सिद्ध होंगे. बता दें कि ये उपाय आपको लगातार 11 दिन तक करना है.
- इस उपाय की शुरुआत मंगलवार के दिन से करना उत्तम रहता है. इसके बाद हनुमान जी की पूजा करें और फल का भोग लगाएं.
हनुमान चालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि।
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेउ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
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साधु संत के तुम रखवारे।। असुर निकन्दन राम दुलारे।।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुह्मरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।
दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
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