Sawan Pradosh व्रत पर करें ये छोटा सा उपाय, भगवान की होगी कृपा

Update: 2024-08-01 10:42 GMT
Sawan Pradosh ज्योतिष न्यूज़ : सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बेहद ही खास माना जाता है जो कि शिव की साधना आराधना को समर्पित दिन है इस दिन भक्त भोलेबाबा की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं प्रदोष व्रत हर माह में दो बार पड़ता है पंचांग के अनुसार अभी सावन का महीना चल रहा है और इस माह पड़ने वाला प्रदोष व्रत बेहद ही खास है जो कि आज यानी 1 अगस्त दिन
गुरुवार को मनाया जा रहा है
 आज का प्रदोष व्रत सावन का पहला प्रदोष व्रत है और गुरुवार के दिन प्रदोष पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष के नाम से जाना जा रहा है इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना का विधान होता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ के साथ ही अगर दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र का पाठ किया जाए तो गरीबी से छुटकारा मिल जाता है और भोलेबाबा के आशीर्वाद से आर्थिक मजबूती आती है।
 दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र
विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय
कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय
कर्पूरकांति धवलाय जटाधराय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
गौरी प्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिप कंकणाय
गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागर तारणाय
ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुंडल मण्डिताय
मंजीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
पंचाननाय फनिराज विभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय
आनंदभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
भानुप्रियाय भवसागर तारणाय
कालान्तकाय कमलासन पूजिताय
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरर्चिताय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय...
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय
मातंग चर्मवसनाय महेश्वराय
दारिद्र्य दु:ख दहनाय नम: शिवाय…
 शिव स्तुति मंत्र
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।
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