ये 6 चीज होलिका दहन में करें अर्पित चमक उठेगी किस्मत, उतर जाएगा कर्ज
रंगों का पर्व होली हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहारों में से एक है। सभी हिंदू जन इसे बड़े ही उत्साह और सौहार्द से इस पर्व को मनाते हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | रंगों का पर्व होली हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहारों में से एक है। सभी हिंदू जन इसे बड़े ही उत्साह और सौहार्द से इस पर्व को मनाते हैं। इस बार 17 मार्च को होलिका दहन है जबकि 18 मार्च को रंगों की होली है। ज्योतिषशात्रियों की मानें तो होलिका दहन में कुछ विशेष वस्तुएं डाली जाती हैं। जो आपके जीवन की समस्याओं को दूर कर सकती हैं। मान्यता के मुताबिक होलिका अग्नि में काली हल्दी डालने से बुरी नजर दूर होती है। वहीं गोमती चक्र अर्पित करने से अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं।
कौड़ियां अर्पित करने से जीवन में चल रही धन संबंधी बाधाओं का दूर किया जा सकता है। इसी तरह से अग्नि में नींबू अर्पित करने से नजर और हाय दूर होती है। अग्नि में गुंजा डालने से शत्रुओं से रक्षा होती है। वहीं एक, दो, पांच और दस रुपये के सिक्के रोग और घर में व्याप्त कलेश को दूर करते हैं। सिक्कों को पांच, 11 या 21 के क्रम में चढ़ाएं (जैसे पांच रुपए के पांच सिक्के, 11 सिक्के या 21 सिक्के)। मां त्रिशला ने बताया कि ये छह चीजें होलिका दहन के दिन अपना विशेष महत्व रखती हैं।
इन्हें एक साथ भी होलिका अग्नि में डाल सकते हैं और अलग-अलग भी। आज होलिका दहन के दिन सुबह 10.48 बजे से रात 8.55 बजे तक भद्रा रहेगी। ऐसे में शास्त्रानुसार रात नौ बजे के बाद होलिका दहन किया जाना शुभ और मंगलकारी होगा। रंग का मनुष्य के जीवन से गहरा संबंध होता है। रंग हमारी भावनाओं को दर्शाते हैं। रंगों के माध्यम से व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से प्रभावित होता है।
यही कारण है कि हमारी भारतीय संस्कृति में होली का पर्व फूलों, रंग और गुलाल के साथ खेलकर मनाया जाता है। ज्योतिष के अनुसार जीवन से जुड़े ये रंग नौ ग्रहों की शुभता को बढ़ाने में भी मददगार साबित होते हैं, जानने के लिए आगे की ज्योतिषीय आधार पर लाल रंग को देखें तो इस रंग से भूमि, भवन, साहस, पराक्रम के स्वामी मंगल ग्रह प्रसन्न रहते हैं।
पीला रंग
पीला रंग अहिंसा, प्रेम, आंनद और ज्ञान का प्रतीक है। यह रंग सौंदर्य और आध्यात्मिक तेज को तो निखारता ही है, इससे देव गुरु बृहस्पति भी प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं।
नारंगी रंग
नारंगी रंग ज्ञान, ऊर्जा, शक्ति, प्रेम और आनंद का प्रतीक है। जीवन में इसके प्रयोग से मंगल और बृहस्पति की कृपा के साथ-साथ सूर्य देव की भी असीम कृपा बरसती है।
सफेद रंग
सफेद रंग शांति, पावनता और सादगी को दर्शाता है। इस रंग के प्रयोग से चंद्रमा, शुक्र की कृपा बनी रहती है।
नीला रंग
नीला रंग साफ-सुथरा, निष्पापी, पारदर्शी, करुणामय, उच्च विचार होने का सूचक है। नीले रंग के प्रयोग से शनिदेव की कृपा बराबर बनी रहती है।
हरा रंग
हरा रंग खुशहाली, समृद्धि, उत्कर्ष, प्रेम, दया, पावनता का प्रतीक है। हरे रंग के प्रयोग से बुध ग्रह प्रसन्न रहते हैं।
सबसे बड़ा उपाय
सौहार्दपूर्ण ढंग से होली खेलने से आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है, वहीं सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। घर-परिवार पर देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। हर साल रंगों का पावन पर्व होली खुशियों की सौगात लेकर आता है, लेकिन कई बार जाने-अनजाने में हम कुछ गलतियां कर जाते हैं, जिससे इस पर्व की मिठास और रंग फीका पड़ जाता है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन गुरुवार, मार्च 17, 2022 को
होलिका दहन मुहूर्त - रात 9 बजकर 6 मिनट से लेकर 10 बजकर 16 मिनट तक
अवधि - 01 घण्टा 10 मिनट
रंगवाली होली शुक्रवार, मार्च 18, 2022 को
भद्रा पूंछ - रात 9 बजकर 6 मिनट से लेकर 10 बजकर 16 मिनट तक
भद्रा मुख - रात 10 बजकर 16 मिनट से लेकर 18 मार्च 2022 की दोपहर 12 बजकर 13 मिनट तक
होलिका दहन क्यों और कैसे
होलिका में गाय के गोबर से बने उपले की माला बनाई जाती है उस माला में छोटे-छोटे सात उपले होते हैं। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका उद्देश्य यह होता है कि होली के साथ घर में रहने वाली बुरी नज़र भी जल जाती है और घर में सुख समृद्धि आने लगती है।लकड़ियों व उपलों से बनी इस होलिका का मध्याह्न से ही विधिवत पूजा प्रारम्भ होने लगती है। यही नहीं घरों में जो भी बने पकवान बनता है होलिका में उसका भोग लगाया जाता है। शाम तक शुभ मुहूर्त पर होलिका का दहन किया जाता है। इस होलिका में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के झंगरी को भी भूना जाता है और उसको खाया भी जाता है। होलिका का दहन हमें समाज की व्याप्त बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का प्रतीक है। यह दिन होली का प्रथम दिन भी कहलाता है।
होली और होलिका से संबंधित प्रचलित कथा
होली पर्व से जुड़ी हुई अनेक कहानियाँ हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। उसने अपने राज्य में भगवान के नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी।
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग कभी भी नहीं छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में जल नहीं सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेक आग में बैठे। आदेश का पालन हुआ परन्तु आग में बैठने पर होलिका तो आग में जलकर भस्म हो गई,परन्तु प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।
अधर्म पर धर्म की, नास्तिक पर आस्तिक की जीत के रूप में भी देखा जाता है। उसी दिन से प्रत्येक वर्ष ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होलिका जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।