शारदीय नवरात्र पर इस शुभ मुहूर्त में करें घटस्थापना
हिंदू धर्म में नवरात्र का काफी अधिक महत्व है। नवरात्र के नौ दिन मां शक्ति के नौ अलग-अलग रूपों की आराधना की जाती है। मान्यता के अनुसार,नवरात्र के 9 दिनों मां दुर्गा स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों को विशेष आशीर्वाद देती हैं। इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं।
हिंदू धर्म में नवरात्र का काफी अधिक महत्व है। नवरात्र के नौ दिन मां शक्ति के नौ अलग-अलग रूपों की आराधना की जाती है। मान्यता के अनुसार,नवरात्र के 9 दिनों मां दुर्गा स्वर्गलोक से पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों को विशेष आशीर्वाद देती हैं। इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। वैसे तो नवरात्र हर क्षेत्र में अलग-अलग तरह से मनाई जाती है, लेकिन दुर्गा पूजा हर जगह होती है। नवरात्र के पहले दिन पूरे विधि-विधान से कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की शुरुआत हो जाती है। नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। आइए ज्योतिषी पंडित जगन्नाथ गुरुजी जानते हैं नवरात्र पर कलश स्थापना का महत्व और शुभ मुहूर्त और घट स्थापना की विधि।
कलश स्थापना का महत्व
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार धार्मिक अनुष्ठान और किसी भी विशेष अवसर पर कलश स्थापना बेहद ही महत्वपूर्ण होती है। शास्त्रों और पुराणों में कलश स्थापना को काफी महत्व दिया जाता है और इससे सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि कलश में सभी ग्रह,नक्षत्रों और तीर्थों का निवास होता है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार 26 सितंबर को नवरात्र के पहले दिन देवी आराधना की पूजा और कलश स्थापना की जाएगी। इसका शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 10 मिनट से सुबह 7 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। हालांकि, अगर आप भूलवश या किसी कारण इस मुहूर्त में कलश स्थापना नहीं कर पाते हैं तो दूसरा शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 49 मिनट से लेकर 12 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। ज्योतिष के अनुसार 26 सितंबर को कलश स्थापना के दिन बहुत ही शुभ संयोग बन रहा है। इस दिन शुक्ल और ब्रह्रा योग का शुभ संयोग होगा।
शारदीय नवरात्र में ऐसे करें घटस्थापना
नवरात्र के पहले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान आदि करके साफ कपड़े पहन लें।
मंदिर या फिर जहां पर कलश स्थापना और मां दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करनी है उस जगह को साफ कर लें।
अब पवित्र मिट्टी में जौ या फिर सात तरह के अनाज को मिला लें।
अब कलश लें और उसमें स्वास्तिक का चिन्ह बना दें और कलावा बांध दें।
अब इसमें थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर पानी दें और मिट्टी के ऊपर स्थापित कर दें।
इसके बाद आम के पांच पत्तों को रखकर मिट्टी का ढक्कन रख दें और उसमें गेहूं चावल आदि भर दें।
अब लाल रंग कपड़े में नारियल को लपेटकर कलावा से बांध दें और कलश के ऊपर रख दें।
इसके बाद भगवान गणेश, मां दुर्गा के साथ अन्य देवी-देवताओं, नदियों आदि का आवाहन करें।
फूल, माला, अक्षत, रोली, कुमकुम आदि चढ़ाएं।
एक पान में सुपारी, लौंग, इलायची और बताशा रखकर चढ़ा दें।
इसके बाद अपने अनुसार भोग लगाएं और जल अर्पित कर दें।
फिर धूप-दीपक जलाकर कलश की आरती कर लें।
इसके साथ ही एक घी का दीपक लगातार 9 दिनों तक जलने दें। जिसे अखंड ज्योति कहा जाता है।
इसके बाद मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा आरंभ करें।
इसी तरह पूरे नौ दिनों तक कलश की पूजा जरूर करें।
रोजाना दुर्गा सप्तशती पाठ के साथ चालीसा और दुर्गा जी के मंत्रों का जाप करें।