Diwali : रमा एकादशी से दीपावली तक इस तरह करें दीपदान, मां लक्ष्मी करेंगी सभी मनोकामनाएं पूरी
कार्तिक मास में दीपदान का अत्यंत महत्व माना जाता है, लेकिन रमा एकादशी से लेकर दीपावली तक जो दीप प्रज्जवलित किया जाता है
कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी ( rama ekadashi 2021) कहा जाता है। यह एकादशी मां लक्ष्मी को समर्पित होती है और इस एकादशी में मां लक्ष्मी (maa lakshmi) की पूजा की जाती है। कार्तिक मास में दीपदान का अत्यंत महत्व माना जाता है, लेकिन रमा एकादशी से लेकर दीपावली ( Deepawali) तक जो दीप प्रज्जवलित किया जाता है उसका विशेष महत्व है और आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आइए जानते हैं रमा एकादशी से लेकर दीपावली तक किन-किन समस्याओं के निदान के लिए कैसे दीपक जलाएं और पाएं जीवन में सुख-समृद्धि।
कर्ज और बंधन से मुक्ति :
रमा एकादशी के दिन संध्या समय में मिट्टी का कच्चा दीपक लें और घी से दीपक प्रज्जवलित करें। दीपक की संख्या 2 होनी चाहिए और इसे पूर्व की दिशा में रखें। इससे जीवन में समस्त बंधन और कर्ज से मुक्ति प्राप्त होती है और सही दिशा प्राप्त होती है।
प्रेम और दाम्पत्य सम्बन्ध में प्रगाढ़ता :
एकादशी के अगले दिन प्रदोष के दिन अपने प्रेम सम्बन्ध को सही करने के लिए और दाम्पत्य जीवन में मधुरता के लिए, किसी भी प्रकार के रिश्तों से कटुता और शत्रुता को समाप्त करने के लिए मिट्टी के पांच दीए लें और उनको दूध से धोकर उसमें देशी घी से दीया प्रज्जवलित करें। मां पार्वती और भगवान शिव का ध्यान कर अपनी मनोकामना हेतु प्रार्थना करें। दीया क्रमशः पहले दो उसके पीछे तीन रखा जायेगा और दिशा ईशान कोण की होनी चाहिए।
जीवन में प्रगति और अच्छे स्वास्थ्य हेतु :
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस कहा जाता है। धनतेरस के दिन कोई भी बीमार हो उसके अच्छे स्वास्थ्य हेतु, जीवन में किसी भी प्रकार की अड़चन हो या आपकी प्रगति रुकी हुई हो ऐसी स्थिति में आपको पीली मिट्टी का दीया प्रज्जवलित करना चाहिए। तिल के तेल में दीया प्रज्जवलित करें और दीए की संख्या पांच होनी चाहिए जिसमें एक चौमुख दीपक और चार सामान्य रहेगा। चौमुख दीपक बीच में रहेगा और दो दीएं आगे और दो पीछे रहेगा। अपनी मनोकामना के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करें। आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
भाग्य साथ न दे रहा हो और संतान को हो कष्ट:
किसी भी कार्य में आपका भाग्य साथ न दे, आपके रिश्तो में कोई न कोई समस्या आती रहती हों, आप पर कोई न कोई लांछन लगता रहता है, वंश वृद्धि नहीं हो पाती है तो ऐसी स्थिति में दीपक जलाने पर आपकी समस्त अड़चनें दूर होगी। चतुर्दशी के दिन का दीपक पितरों को समर्पित होता है और जब पितृ कुपित होते हैं तब आप चाहकर भी किसी कार्य में सफल नहीं हो सकते। चतुर्दशी के दिन दीपक तिल के तेल का होगा और दिशा दक्षिण और रात्रि पहर में प्रज्जवलित किया जाता है। पितरों को प्रणाम कर क्षमा याचना करें। पितृ प्रसन्न होंगे और आपका समस्त कार्य पूर्ण होगा।
सर्वसिद्धि और मनोकामना हेतु:
कार्तिक अमावस्या के दिन संध्या में भगवती लक्ष्मी की पूजा होती है, जिसे दीपोत्सव या दीपावली कहा जाता है। प्रत्येक तरह की सफलता हेतु अर्थात सर्व मनोकामना हेतु दीपावली के दिन मां भगवती लक्ष्मी को 16 दीपक प्रज्जवलित करने का विधान है, जिसमें एक चौमुख दीपक रहेगा। दीपक प्रज्जवलित करने की दिशा उत्तर-पूर्व और पूर्व रहेगा। दीपक गाय के घी होना चाहिए। मां लक्ष्मी का ध्यान कर अपनी मनोकामना को उनके समक्ष प्रकट करें। आपकी सारी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण होगी। इसलिए कार्तिक माह में दीपदान का ही महत्व माना जाता है और कार्तिक कृष्णपक्ष की रमा एकादशी से लेकर दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन तक विशेष महत्व होता है।