मां धूमावती जन्म कथा
माँ के विषय में पौराणिक कथा है, कि एक बार भगवान शिव-पार्वती कैलाश पर विचरण करते हुए विश्राम हेतु कुछ समय के लिए एक स्थान पर बैठ गए ! कुछ देर बाद पार्वती को भूख सताने लगी, उन्होंने शिव से क्षुधापूर्ति की याचना की, शिव ने कहा प्रिये ! मैं शीघ्र ही भोजन की व्यवस्था करता हूँ, काफी देर हों गई किन्तु भोजन की व्यवस्था नहीं हो पायी और मां 'पार्वती' से भूख बर्दास्त नहीं हुई, तब स्वयं भगवती ने शिव को ही निगल लिया, जिससे उनके शरीर से धुआं निकलने लगा ! और शिव जी अपनी माया से बाहर आ गये। बाहर आकर शिव ने पार्वती से कहा, मैं एक पुरूष हूँ और तुम एक स्त्री हो तुमने अपने पति को ही निगल लिया। अतः अब तुम विधवा हो गई हो इस कारण तुम सौभाग्यवती के श्रृंगार को छोड़कर वैधव्य वेष में रहो और संसार में 'धूमावती' नाम से विख्यात होगी।
धूमावती जयंती और पूजा विधि
त्रिवर्णा, विरलदंता, चंचला, विधवा, मुक्तकेशी, शूर्पहस्ता, कलहप्रिया, काकध्वजिनी आदि तुम्हारे और भी सहस्त्रों नाम होंगे। माँ की कृपा से प्राणी धर्म, अर्थ काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ प्राप्त कर लेता है। गृहस्थ पुरुष को मां का यह मंत्र 'ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा' रुद्राक्ष की माला से जपते हुए मां के सौम्यरूप की पूजा करनी चाहिए। इन्हीं मन्त्रों द्वारा राई में नमक मिलाकर होम करने से शत्रुनाश, नीम की पत्तियों सहित घी का होम करने से कर्ज से मुक्ति मिल जाती जाती है। काली मिर्च से होम करने से कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय एवं कारागार से मुक्ति मिलती है।
जटामांसी और कालीमिर्च से होम करने पर जन्मकुंडली के सभी अंकारक, गोचर एवं मारक दशाओं के ग्रहदोष नष्ट हो जाते हैं। माँ का सर्वोत्तम भोग मीठी रोटी और घी के द्वारा होम करने से से प्राणियों के जीवन आया घोर से घोर संकट भी समाप्त हो जाता है ! माँ की पूजा के लिए सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र, केसर, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन,नारियल पंचमेवा आदि ही प्रयोग में लायें। इस प्रकार माँ श्री धूमावती की आराधना करके दरिद्रता के श्राप से मुक्त हुआ जा सकता है।
धूमावती पूजा मंत्र
ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्॥
धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥