Chaturmas 2021: चतुर्मास या मलमास, ये वो चार माह होते हैं, जिनमें भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवती योग निद्रा में चले जाते हैं। जिस दिन से ये सभी योग निद्रा में जाते हैं, उस दिन को देवशयनी एकादशी के नाम से जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्षChaturmas 2021: Why does Lord Vishnu go into Yoga Nidra only in Chaturmas? Learn Mythology की एकादशी देवशयनी एकादशी कहलाती है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को है। इस दिन से ही चतुर्मास का प्रारंभ हो जाएगा। शिव परिवार को छोड़ सभी देवी-देवता निद्रासन में चले जाएंगे। भगवान विष्णु के निद्रासन में जाने से सभी शुभ और मांगलिक कार्य श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक चार माह के लिए बंद हो जाएंगे, भगवान शिव इस पृथ्वी के पालनहार और सांचलक होंगे। इन चार माह में शिव परिवार की आराधना होगी। फिर 14 नवंबर 2021 को कार्तिक मास की एकादशी अर्थात् देवउठनी एकादशी या देवोउत्थान एकादशी को भगवान विष्णु निद्रासन से बाहर आएंगे और पृथ्वी का संचालन अपने हाथों में लेंगे। तब से विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, उपनयन संस्कार आदि जैसे मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे। अब आपके मन में प्रश्न होगा कि आखिर भगवान विष्णु चतुर्मास में ही निद्रासन में क्यों चले जाते हैं, तो इसका जवाब इस पौराणिक कथा में है।
चतुर्मास की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, असुर राजा बलि ने तीनों लोक पर अपना अधिकार कर लिया था। वह अपना 100वां यश्र कर रहे थे। यह जानकर देवों के राजा इंद्र घबरा गए और भगवान विष्णु के पास मदद के लिए पहुंच गए। इंद्र को भयभीत होते देखकर भगवान विष्णु ने सोचा कि अब उनके वामन अवतार का समय आ गया है। उन्होंने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ में दान मांगने पहुंच गए। राजा बलि सहर्ष उनको दान देने के लिए तैयार हो गया।
तब भगवान विष्णु ने उससे तीन पग धरती दान में मांगी। इस बात को सुनकर असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने बलि को समझाया कि इसमें कुछ रहस्य है, लेकिन बलि ने दान देने का वचन दे दिया था। उसने वामन देव से तीन पग धरती नाप लेने को कहा। भगवान विष्णु ने एक पग में धरती और दूसरे पग में आकाश नाप लिया। तब उन्होंने कहा कि अब तीसरा पग कहां रखें, इस पर बलि ने कहा कि उसका शीष ही शेष बचा है। उस पर ही रख दें। भगवान विष्णु ने अपने दो पग से आकाश और पृथ्वी को बलि के अधिकार से मुक्त करा दिया था। इंद्र की समस्या खत्म हो गई थी।
राजा बलि की दानशीलता और वचनबद्धता से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया, साथ ही वर मांगने को कहा। तब बलि ने कहा कि प्रभु आप मेरे साथ पाताल लोक चलें और वहीं पर निवास करें। भगवान विष्णु अपने वचन से बंधे थे, उन्होंने अपने भक्त की इच्छा पूरी की और पाताल लोक चले गए, वहीं पर रहने लगे। यह देखकर माता लक्ष्मी समेत सभी देवी और देवता चिंतित हो गए।
फिर माता लक्ष्मी एक दिन गरीब महिला बनकर राजा बलि के पास पहुंचीं और उसे राखी बांधकर अपना भाई बना लिया। उन्होंने बलि से कहा कि वे भगवान विष्णु को उनके वचन से मुक्त कर दें ताकि वे अपने धाम बैकुंठ में रह सकें। बलि ने भगवान विष्णु को वचन से मुक्ज कर दिया। तब श्रीहरि ने भी अपने भक्त बलि को वरदान दिया कि वे हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में ही रहेंगे। इस वजह से हर वर्ष चतुर्मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं।