कार्तिक महीने में है जप एवं ध्यान का है विशेष महत्व, इस मंत्र के जाप से मिलती है मन को शांति...

कार्तिक माह का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है. शास्त्रों में बताया गया है कि इस माह में जो व्यक्ति व्रत और तप करता है कि उस मोक्ष की प्राप्ति होती है

Update: 2020-11-01 08:44 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| कार्तिक माह का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है. शास्त्रों में बताया गया है कि इस माह में जो व्यक्ति व्रत और तप करता है कि उस मोक्ष की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि यह माह भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय है. कार्तिक माह में तप और व्रत का माह है, इस माह में भगवान की भक्ती और पूजा अर्चना करने से मनुष्य की सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

इस महीने में धन और धर्म दोनों से संबंधित प्रयोग किए जाते हैं. कार्तिक मास मंत्र जाप, ध्यान की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. गायत्री मंत्री हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण मंत्र है. यह गायत्री मंत्र ऋग्वेद यजुर्वेद और सामवेद में प्रस्तुत है. एक ईश्वर का उपासना करना इसका मुख्य उद्देश्य है. चार वेदो में से यह मंत्र सबसे प्रसिद्ध मंत्र है.

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्.'

 गायत्री मंत्री के जाप से व्यक्ति के अन्दर उत्साह और सकारात्मकता बढ़ने लगती है. मानसिक तनाव खत्म होता है और व्यक्ति का मन धार्मिक कार्यों में लगने लगता है. व्यक्ति का मन बुराइयों से दूर होने लगता है.

गायत्री मंत्र के जाप करने का समय

वेदों और पुराणों में गायत्री महामंत्र का जाप करने के लिए तीन समय बताए गए हैं. जिसमें से प्रातःकाल का समय जाप का पहला समय होता है. दोपहर का समय जाप करने का दूसरा समय बताया गया है. और जाप करने के तीसरे समय के रूप में शाम का सायंकाल का समय बताया गया है. वैसे गायत्री महामंत्र का जाप कभी भी और कहीं भी किया जा सकता है बशर्ते ऐसी स्थिति में मौन रहकर व्यक्ति को जाप करना चाहिए.

गायत्री मंत्र का जाप करने की विधि

घर के मंदिर या किसी साफ जगह पर गायत्री माता का ध्यान करते हुए जाप करना चाहिए.

गायत्री महामंत्र का जाप स्नान आदि के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनकर करना चाहिए.

महामंत्र का जाप करते समय आरामदायक मुद्रा में बैठना चाहिए.

महामंत्र का जाप करने के लिए तुलसी या चन्दन की माला का प्रयोग करना चाहिए.

महामंत्र का जाप करते समय जल्दबाजी नहीं करना चाहिए.

महामंत्र का जाप तेज स्वर में नहीं करना चाहिए.

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