worship of lakshmi: शुक्रवार को मां लक्ष्मी की पूजा में करें इन मंत्रों का जप

Update: 2024-06-14 05:30 GMT

मां लक्ष्मी मंत्र: हिंदू धर्म में शुक्रवार के दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित होता है। शुक्रवार के दिन निमित्त वैभव लक्ष्मी व्रत रखने का विधान भी है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से सुख, सौभाग्य और आय में वृद्धि होती है। ज्योतिष के अनुसार, किसी भी तरह की आर्थिक परेशानी को दूर करने के लिए मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। धर्म शास्त्रों में निहित है कि मां लक्ष्मी का स्वभाव अत्यंत ही चंचल और शांत है। मां लक्ष्मी एक स्थान पर ज्यादा समय तक नहीं रहती जिसके कारण जीवन में सुख-दुख का संयोग लगा रहता है। हर दुख को दूर करने के लिए नियमित रूप से मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। अगर आप भी पैसे की तंगी से परेशान हैं और इससे छुटकारा पाना चाहते हैं, तो कम से कम 16 शुक्रवार लक्ष्मी वैभव व्रत जरूर रखें। साथ ही शुक्रवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें। इसके अलावा, पूजा के समय इन मंत्रों का जप अवश्य करें। मान्यता है कि इन मंत्रों का जाप करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और धन से जुड़ी हर समस्या दूर कर देती हैं। माँ लक्ष्मी पूजा मंत्र

1. या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डान्शु तेजस्विनी।

या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥

या रत्नाकर्मन्थात्प्रगटिता विष्णुस्वया गेहिनी। सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥

2. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै असमांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ । 3. ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ।। 4. ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्यः सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॐ ।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

5. ॐ ह्रीं क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी नृसिंहाय नमः । ॐ क्लीं क्ष्रौं श्रीं लक्ष्मी देव्यै नमः ।। 6. ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्यधिपतये

धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥

7. ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा । 8. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क हल ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ। 9. ऊँ हिमकुण्डमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुं सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ।। 10. लक्ष्मी ध्यानम

सिंदूरारुणकान्तिमब्जवसतिं सौन्दर्यवरंनिधिं,

कॊतिराङ्गदहारकुण्डलकटीसूत्रादिभिर्भूषिताम् ।

हस्ताब्जैर्वसुपत्रमब्जयुगलादर्शंवहन्ती परां,

आवीतां परिवारिकाभिरनिशं ध्याये प्रियं शार्ङ्गिनः ॥

भूयात् भूयो द्विपद्माभयवरदकरा तप्तकार्तस्वराभा,

रत्नौघाबद्धमौलिर्विमलतरदुकूलार्तवलेपनाढ्या ।

नाना कल्पाभिराम स्मितमधुरमुखी सर्वगीर्वाणवनद्या,

पद्माक्षी पद्मनाभोरसिकृतवसतिः पद्मगा श्री श्रीये वः ॥

वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां,

हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैर्नानाविधैर्भूषिताम् ।

भक्ताभिष्टफलप्रदां हरिहरब्रह्मादिभिस्सेवितां,

पार्श्वेय पक्षजशङ्खपद्मनिधिभिर्युक्तां सदा शक्तिभिः ॥

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