सोमवार को करें प्रिय शिव मंत्र का जाप, जानें सोमवार के व्रत की पूजा विधि, आरती और महत्व
भगवान शिव के आशीर्वाद से भक्तों को किसी भी प्रकार का भय नहीं होता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सोमवार के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत तरीके से पूजा की जाती है. त्रिदेवों में से एक महादेव भक्तों के प्रति काफी दयालु हैं इसीलिए उन्हें प्रसन्न करना काफी आसान माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, सोमवार के दिन व्रत रखने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं तथा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. भगवान शिव के आशीर्वाद से भक्तों को किसी भी प्रकार का भय नहीं होता है तथा वह हर मुश्किल से मुक्त होते हैं. शिव जी की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है. कुंवारी लड़कियों के लिए भी सोमवार का व्रत रखना लाभदायक माना गया है. अगर आप सोमवार का व्रत रख रहे हैं तो यहां जानें पूजा विधि, आरती, महत्व और कथा.
सोमवार व्रत पूजा विधि
नारद पुराण के अनुसार, सोमवार के दिन शिव भक्तों को प्रातः काल स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए. इसके बाद भगवान शिव और पार्वती को स्मरण करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए. व्रत का संकल्प लेने के बाद शिवजी को जल और बेलपत्र चढ़ाएं और भगवान शिव के साथ संपूर्ण शिव परिवार की पूजा करें. पूजा करने के बाद कथा सुनें और आरती करने के बाद घर के सदस्यों में प्रसाद बांटें.
सोमवार व्रत प्रिय शिव मंत्र
1. ॐ नमः शिवाय
2. नमो नीलकण्ठाय
3. ॐ पार्वतीपतये नमः
4. ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय
5. ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा
सोमवार व्रत महत्व
हिंदू वेद और पुराणों के अनुसार, सोमवार के दिन जो भक्त शिव शंभू की पूजा करता है वह हर प्रकार की समस्याओं से दूर रहता है. शिवजी की उपासना करने से घर में माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है. आर्थिक समस्याओं से भी शिव के भक्तों को छुटकारा मिलता है.
भगवान शिव की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा| ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा|| ॐ जय शिव..||
एकानन चतुरानन पंचानन राजे| हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे|| ॐ जय शिव..||
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे| त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे|| ॐ जय शिव..||
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी| चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी|| ॐ जय शिव..||
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे| सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे|| ॐ जय शिव..||
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता| जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता|| ॐ जय शिव..||
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका| प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका|| ॐ जय शिव..||
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी| नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी|| ॐ जय शिव..||
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे| कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे|| ॐ जय शिव..||