चाणक्य नीति: आलसी व्यक्ति कभी ज्ञान का इच्छुक नहीं
ज्ञान होना हर किसी के लिए जरूरी है।
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | ज्ञान होना हर किसी के लिए जरूरी है। मगर किसी भी चीज़ का ज्ञान अर्जित करने के लिए मन में आत्मविश्वास होना बहुत ज़रूरी होता है। साथ ही साथ ज़रूरी होता है आलसी न होना। जी हां आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में बताया कि अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में ज्ञानी बनना चाहता है, किसी भी तरह के ज्ञान को पाना चाहता है उसके लिए बहुत आवश्यक होता है कि वह अपने आलस को हमेशा हमेशा त्याग देना चाहिए। तो आइए जानते हैं चाणक्य द्वारा बताए गए इस नीति श्लोक के बारे में-
श्लोक-
नास्त्यलसस्य शास्त्राधिगम:।
आलसी व्यक्ति कभी ज्ञान पाने का इच्छुक नहीं होता। ऐसे व्यक्ति से उसका परिवार भी दुखी रहता है और समाज के लिए भी ऐसे व्यक्ति बोझ होते हैं।
इसके अलावा चाणक्य बताते हैं कि अधर्म की राह पर चलना एक तरह की कामवासना ही है। इसलिए चाणक्य कहते हैं कि चाहे हालात कैसे भी क्यों न हो किसी भी व्यक्ति को अधर्म का रास्ता नहीं चुनना चाहिए।
अधर्म की राह है काम वासना
श्लोक-
न स्त्रैणस्य स्वर्गाप्तिर्धर्मकृत्यं च।
स्त्री के प्रति आसक्त रहने वाले पुरुष को न स्वर्ग मिलता है, न धर्म कर्म।
जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों के वशीभूत होकर काम वासना में लिप्त रहता है और सदैव स्त्री को भोग्या ही बनाए रखता है ऐसा व्यक्ति न तो स्वॢगक सुख प्राप्त करता है और न ही उसका मन धर्म-कर्म में प्रवृत्त होता