Chanakya Niti : सुखी जीवन जीने के लिए ये बातें जरूरी जान लें

आचार्य चाणक्य की नीतियां आज पूरे संसार में प्रचलित हैं

Update: 2021-04-13 10:57 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आचार्य चाणक्य की नीतियां आज पूरे संसार में प्रचलित हैं. उनकी बातें जीवन के लिहाज से बेहद सही हैं लेकिन हम और आप उनकी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते और शायद यही वजह है कि अपने जीवन में ठोकर खाते रहते हैं. हम आचार्य चाणक्य की बातों को लेकर गंभीर नहीं हो पाते. हमें लगता है कि उन्होंने केवल कहने के लिए ये बातें कह दी हैं, जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.

उन्होंने जीवन की गूढ़ से गूढ़ बातें भी अपने नीति शास्त्र में निहित की हैं जो हम सबको जाननी चाहिए और उन अनमोल बातों को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए. अगर हम ऐसा करते हैं तो अपने जीवन में हमेशा अग्रणी ही रहेंगे. आज हम उनकी एक और नीति के बारे में बात करने वाले हैं.
वो अपने इस श्लोक के माध्यम से क्या कुछ बता रहे हैं? जानिए-
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवा:।
न च विद्याSSगम: कश्चित् तं देशं परिवर्जयेत्।।
इस श्लोक का आशय ये है कि, जिस देश में मान-सम्मान, आजीविका, गुरु, माता-पिता, विद्या प्राप्ति के कोई भी साधन उपलब्ध न हों. उस देश के उस स्थान को जल्द से जल्द त्याग कर देना ही हितकर है.
मान-सम्मान
आज के समय में हर एक व्यक्ति को मान-सम्मान की आवश्यकता होती है. बिना इसके वो अपना जीवन यापन नहीं कर सकता. इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि अगर आपके घर के दरवाजे पर कोई भिखारी भीख मांगने आता है और आप उसे दुत्कार कर पैसे देंगे, तो वो कभी भी नहीं स्वीकारेगा. तो सोचिए कि मान-सम्मान की आवश्यकता उसस व्यक्ति को कैसे नहीं होगी जो स्वयं कमाकर खाता है. वास्तव में, एक व्यक्ति धन के बिना रह सकता है लेकिन मान-सम्मान के बिना नहीं.
वृत्ति
वृत्ति यानी रोजगार. रोजगार के बिना एक व्यक्ति के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. वो बिना रोजगार के नहीं रह सकता. उसे अपनी जीवन जीने के लिए आजीविका की आवश्यकता होती है ताकि वो अपने रोजगार में श्रम कर सके. अगर धन की प्राप्ति होगी तो वो अपनी आजीविका अच्छे से चला पाएगा. बिना वृत्ति या किसी भी आश्रय के सहारे कोई भी नहीं रह सकता.
संबंधी
मनुष्य एक सामाजिक प्रामी है और समाज में ही उसका निवास स्थान होता है. वो लोगों से दूर नहीं रह सकता. अकेला जीवन जीना संभव नहीं हो पाता. जब भी किसी तरह की विपत्ति जीवन में आती है तो अपनों की आवश्यकता सबसे अधिक होती है. उस विपत्ति के समय में दोस्त, संबंधी यया परिजन साथ खड़े होते हैं, जिससे उस व्यक्ति को जीवन जीने के लिए संबल मिलता है
विद्या
अपने जीवन को उन्नत बनाने के लिए एक व्यक्ति को विद्या की आवश्यकता होती है. अगर वो विद्या ग्रहण नहीं करेगा तो उसका जीवन निरर्थक हो जाएगा और अगर वो किसी कारणवश विद्या ग्रहण नहीं कर पाता तो आने वाली पीढ़ी के लिए ये परमावश्यक हो जाता है. बिना विद्या के मनुष्य का विकास असंभव है.


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