शिव की साधना करने से पहले जरूर जान लें ये महत्वपूर्ण नियम
भगवान शिव की (Lord Shiva) साधना अत्यंत ही सरल और शीघ्र ही शुभ फल दिलाने वाली मानी गई है, लेकिन शिव की साधना में कई बार जाने-अनजाने होने वाली गलतियां हमें पुण्य के बजाय पाप का भागीदार बना देती हैं. ऐसे में शिव की साधना करने से पहले जरूर जान लें ये महत्वपूर्ण नियम.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू (Hindu) धर्म में भगवान शिव (Lord Shiva) को कल्याण का देवता माना गया है. मान्यता है कि जिस भी घर के पूजाघर में भगवान शिव की विधि-विधान से साधना-आराधना होती है, वहां पर शुभता और संपन्नता का वास होता है. महादेव (Mahadev) की कृपा से उस घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है और भूलकर भी शिव साधक के जीवन में दु:ख और दुर्भाग्य नहीं आता है. सनातन परंपरा में वैसे तो शिव की साधना अत्यंत ही सरल मानी गई है, क्योंकि भगवान शिव मात्र जल और कुछेक पत्तियां चढ़ाने मात्र से प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूरी कर देते हैं, लेकिन उनकी पूजा से जुड़े कुछ विशेष नियम भी हैं, जिन्हें हर शिव भक्त को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए.
यदि आप भगवान शिव के साधक हैं तो आपको उनकी पूजा करते समय दिशा का विशेष ख्याल रखना चाहिए. भगवान शिव की मूर्ति या चित्र को कहीं भी किसी भी दिशा में न रखें, बल्कि घर के ईशानकोण में ही अपना पूजा स्थान बनाकर उसमें पवित्रता के साथ रखें और दैनिक रूप से उनकी पूजा करें. इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि शिवलिंग साधना के लिए है न कि आपके घर की शोभा बढ़ाने के लिए, यदि आप इस नियम की अनदेखी करते हैं तो आपको पुण्यफल की बजाय पाप के भागीदार हो सकते हैं. भगवान शिव की पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए.
कभी भी घर में शिवलिंग को घर के किसी ऐसे कोने पर में न रख दें जहां पर उनका पूजन एवं दर्शन मुश्किल से संभव हो पाता हो और इसी प्रकार शिवलिंग की पूजा को एक बार कहीं पर स्थापित करने के बाद बार–बार उसका स्थान बदलने की गलती भी न करें.
महादेव की कृपा पाने के लिए यदि आप किसी मंत्र का जाप कर रहे हैं तो हमेशा उन्हें प्रिय माने जाने वाले रुद्राक्ष की माला से ही जप करें. मान्यता है रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव की आंसुओं से हुई है, जिसे वे स्वयं हमेशा धारण किए रहते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि जिस माला से आप भगवान शिव के महामंत्र का जाप करते हैं, उसे कभी भी स्वयं धारण न करें. भगवान शिव के जप की माला अलग रखें और उसे गोमुखी में डालकर जपें.
महादेव की साधना कभी भी जमीन पर बैठकर न करें. उनकी पूजा में शुद्ध आसन का प्रयोग करें. यदि संभव हो तो उनी आसन पर बैठकर शिव की पूजा करें. इस बात का हमेशा ख्याल रखें कि पूजा में हमेशा अपने ही आसन का प्रयोग करना चाहिए, कभी भी दूसरे के आसन पर बैठकर पूजा न करें और न ही किसी दूसरे की माला से शिव के मंत्र का जप करें.
भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय बेलपत्र और शमी पत्र को चढ़ाने का भी नियम होता है. जब कभी भी भगवान शिव की पूजा करें तो बेलपत्र और शमी पत्र को शुद्ध जल से धोकर उसका पीछे डंठल का मोटा भाग जिसे वज्र कहते हैं, उसे तोड़ दें और शिवलिंग या फिर उनकी फोटो पर उलटा करके चढ़ाएं.
भगवान की शिव की पूजा में कभी भी बासी फूल न चढ़ाएं. शिव की पूजा में हमेशा ताजे पुष्प चढ़ाएं और दूसरे दिन शिवलिंग पर बासी फूल न चढ़ा रहने दें. समय पर उन्हें शुद्ध गंगाजल से स्नान करके बासी पुष्प को हटा दें. महादेव की पूजा में तिल और चम्पा के फूल का प्रयोग नहीं किया जाता है, इसलिए इसे भूलकर भी न चढ़ाएं.
जिस शंख और तुलसी के बगैर भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है, उस पवित्र शंख और तुलसी का प्रयोग भूलकर भी भगवान शिव की पूजा में न करें, क्योंकि ये दोनों ही चीजों का शिव पूजा में निषेध है. इसी प्रकार शिव की पूजा में हल्दी और सिंदूर भी नहीं चढ़ाना चाहिए.