अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान का है विशेष महत्व, मिलता है आशीर्वाद

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी मनाई जाती है। इस वर्ष ये व्रत 28 अक्तूबर, गुरुवार को पड़ रहा है

Update: 2021-10-25 08:30 GMT

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी मनाई जाती है। इस वर्ष ये व्रत 28 अक्तूबर, गुरुवार को पड़ रहा है। इस व्रत में अहोई माता के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। इस दिन माताएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और रात को तारों को देखकर व्रत खोलती हैं। इस दिन माताएं माता पार्वती के अहोई स्वरूप की अराधना करती हैं और अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन निर्जल उपवास करती हैं। शाम के समय आकाश में तारे देखने और अर्घ्य देने के बाद महिलाएं व्रत का पारण करती हैं। 

जैसा कि सब जानते हैं कि अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और संतान सुख के लिए करती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसा कुंड है जिसमें यदि पति और पत्नि दोनों अहोई अष्टमी  के दिन स्नान कर लें तो उन्हें शीघ्र ही संतान प्राप्ति होती है। चलिए जानते हैं क्या है राधा  कुंड की पौराणिक मान्यता।

राधा कुंड का महत्व 

अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु एवं संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस संदर्भ में राधा कुंड का अपना ही महत्व है। मथुरा नगरी से लगभग 26 किलोमीटर दूर गोवर्धन परिक्रमा में राधा कुंड स्थित है जो कि परिक्रमा का प्रमुख पड़ाव है। इस कुंड के बारे में एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि नि:संतान दंपत्ति कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि को दंपत्ति राधा कुंड में एक साथ स्नान करते हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है। इसी कारण से इस कुंड में अहोई अष्टमी पर स्नान करने के लिए दूर- दूर से लोग आते हैं।

राधा कुंड में स्नान की पौराणिक मान्यता 

अहोई अष्टमी का यह पर्व यहां पर प्राचीन काल से मनाया जाता है।इस दिन पति और पत्नि दोनों ही निर्जला व्रत रखते हैं और मध्य रात्रि में राधा कुंड में डूबकी लगाते हैं। तो ऐसा करने पर उस दंपत्ति के घर में बच्चे की किलकारियां जल्द ही गूंज उठती है।इतना ही नहीं जिन दंपत्तियों की संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। वह भी अहोई अष्टमी के दिन अपनी संतान के साथ यहां राधा रानी की शरण में यहां हाजरी लगाने आते हैं और इस कुंड में स्नान करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है। 

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण गोवर्धन में गाय चराने जाते थे। इसी दौरान अरिष्टासुर नाम के एक असुर ने गाय के बछड़े का रूप धारण करके श्रीकृष्ण पर हमला करना चाहा लेकिन श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। राधा कुंड क्षेत्र पहले  राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन थी। चूंकि श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर का वध गौवंश के रूप में किया था, इसलिए राधा जी ने श्रीकृष्ण को चेताया कि उन्हे गौवंश हत्या का पाप लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इस पर राधाजी ने भी बगल में अपने कंगन से एक दूसरा कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। श्रीकृष्ण के खोदे गए कुंड को श्याम कुंड और राधाजी के कुंड को राधा कुंड कहते हैं।

शरद पूर्णिमा विशेष

एक दूसरी मान्यता के अनुसार ब्रह्म पुराण व गर्ग संहिता के गिरिराजखण्ड के अनुसार महारास के बाद श्रीकृष्ण ने राधाजी की इच्छानुसार उन्हें वरदान दिया था कि जो भी दंपत्ति राधा कुंड में इस विशेष दिन स्नान करेगा उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। कहते हैं श्रीकृष्ण और राधा ने स्नान करने के बाद महारास रचाया था। ऐसा माना जाता है कि आज भी कार्तिक मास के पुष्य नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण रात्रि बारह बजे तक राधाजी और उनकी आठ सखियों के साथ महारास करते हैं।

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