क्रोधित भगवान गणेश दूसरे देवी-देवताओं की शादी में डालने लगे थे खलल, जानें
भगवान गणेश जब कभी भी किसी अन्य देवता के विवाह में जाते थे तो उन्हें बहुत ठेस पहुंचती थी. यही वजह थी कि वे अपना विवाह ने होने से दूसरों के विवाह में भी खलल डालने लगे थे.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र गणेश जी की पूजा सभी देवी-देवताओं से पहले की जाती है. प्रत्येक शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश को ही सबसे पहले पूजा जाता है. गणेश जी को गणपति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह गणों के देवता हैं और इनका वाहन एक मूषक है. ज्योतिषी विद्या में गणेश जी को केतु के देवता कहा गया है.
गणेश जी के शरीर की रचना माता पार्वती द्वारा की गई थी. उस समय उनका मुख सामान्य था, बिल्कुल एक मनुष्य की तरह. एक समय की बात है माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को आदेश दिया कि उन्हें घर की पहरेदारी करनी होगी क्योंकि माता पार्वती स्नानघर जा रही थीं.
गणेश जी को आदेश मिला की जब तक पार्वती माता स्नान कर रही हैं, घर के अंदर कोई भी प्रवेश न करे. तभी वहां भोलेनाथ आए लेकिन गणपति ने उन्हें अपने ही घर में प्रवेश करने से मना कर दिया. जिसकी वजह से शिव जी ने क्रोधित होकर गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया. गणेश को इस अवस्था में देख माता पार्वती क्रोधित हो गईं. जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती के दुख को दूर करने के लिए गणेश को जीवित कर उनके धड़ पर हाथी का सिर लगा दिया और उन्हें प्रथम पूज्य का वरदान दिया.
क्यों नहीं हो रहा था गणपति का विवाह
हाथी का सिर लगाने के बाद गणेश जी के दो दन्त हो गए थे, जो उनके हाथी वाले सिर की सुंदरता बढ़ाते थे. किन्तु परशुराम के साथ युद्ध के दौरान उनका एक दांत टूट गया था. तब से वे एकदंत कहलाए जाने लगे. मान्यताओं के अनुसार दो कारणों की वजह से गणेश जी का विवाह नहीं हो पा रहा था. उनके साथ विवाह करने के लिए कोई भी सुशील कन्या तैयार नहीं होती थी. इसका पहला कारण ये था कि उनका सिर हाथी वाला था और दूसरा कारण ये था कि उनका एक दांत टूटा हुआ था. इसी वजह से गणेश भगवान नाराज भी रहते थे.
अन्य देवी-देवताओं के विवाह में खलल उत्पन्न करने लगे थे भगवान गणेश
भगवान गणेश जब कभी भी किसी अन्य देवता के विवाह में जाते थे तो उन्हें बहुत ठेस पहुंचती थी. यही वजह थी कि वे अपना विवाह ने होने से दूसरों के विवाह में भी खलल डालने लगे थे. इस काम में गणेश जी की सहायता उनका वाहन मूषक करता था. वह मूषक गणेश जी के आदेश का पालन कर विवाह के मंडप को नष्ट कर देता था, जिससे विवाह के कार्य में रूकावट आती थी. भगवान गणेश और चूहे की मिली भगत से सारे देवता परेशान हो गए और उन्होंने शिवजी को जाकर अपनी समस्या सुनाई. लेकिन इस समस्या का हल शिवजी के पास भी नहीं था. तो उन्होंने बोला कि इस समस्या का निवारण सिर्फ ब्रह्मा जी ही कर सकते हैं.
ब्रह्मा जी ने निकाला था समाधान
भगवान शिव की सलाह मिलने के बाद सभी देवी-देवता ब्रह्मा जी के पास गए. उस समय ब्रह्माजी योग में लीन थे. कुछ देर बाद देवताओं के समाधान के लिए उनके योग से दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि प्रकट हुईं. दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री थीं. दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्माजी गणेश जी के पास पहुंचे और बोले कि आपको इन्हें शिक्षा देनी है. गणेश जी शिक्षा देने के लिए तैयार हो गए. जब भी चूहे द्वारा गणेश जी के पास किसी के विवाह की सूचना आती थी तो ऋद्धि और सिद्धि उनका ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं थी. ऐसा करने से हर विवाह बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता था.
फिर ऐसे हुई थी भगवान गणेश की शादी
फिर एक दिन गणेश जी को सारी बात समझ में आई, जब चूहे ने उन्हें देवताओं के विवाह बिना किसी रूकावट के सम्पूर्ण होने के बारे में बताया. इससे पहले कि गणेश जी क्रोधित होते, ब्रह्मा जी उनके सामने ऋद्धि-सिद्धि को लेकर प्रकट हुए और बोलने लगे कि मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है, कृपया आप इनसे विवाह कर लें. इस प्रकार गणेश जी का विवाह बड़ी धूमधाम से ऋद्धि और सिद्धि के साथ हुआ और इसके बाद इन्हे दो पुत्रों की प्राप्ति हुई जिनका नाम था शुभ और लाभ.