अमर प्रेम कथा: इसे कहते हैं जनम-जनम का प्यार, अपने जीवनसाथी को पाने के लिए लिया जन्म

इन्‍हें अपने प्‍यार का है आज भी इंतजार

Update: 2020-12-12 15:25 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : इन्‍हें अपने प्‍यार का है आज भी इंतजार- प्रेम के शाश्‍वत होने का प्रमाण इत‍िहास में तो खूब पढ़ने-सुनने को म‍िलता है लेक‍िन हमारे ग्रंथों में भी इसका व‍िस्‍तारपूर्वक उल्‍लेख है। जहां हमें यह पता चलता है क‍ि प्रेम से कोई भी अछूता नहीं रह पाया फ‍िर चाहे वह देवी-देवता ही क्‍यों न हों। यहां तक क‍ि उन्‍होंने अपने प्रेम को प्राप्‍त करने के ल‍िए कई-कई जन्‍म ल‍िए तो कुछ आज सद‍ियों बाद भी इंतजार में हैं… जान‍िए इस प्रेम की अनूठी कहानी….

कुब्जा की प्रेम कथा
कुब्‍जा मथुरा के राजा कंस के दरबार की एक कुबड़ी दासी थी। हालांक‍ि वह कुबड़ी थी लेक‍िन उसकी सुंदरता का कोई जोड़ नहीं था। वह महल में प्रत‍िद‍िन फूल, चंदन और त‍िलक आदि ले जाने का कार्य क‍िया करती थी। जब भगवान श्रीकृष्‍ण कंस वध के उद्देश्‍य से मथुरा आए, तब उन्‍होंने कुब्‍जा का कुबड़ापन ठीक कर द‍िया। कुब्‍जा श्रीकृष्‍ण से प्रेम करने लगी थी। भगवान ने उन्‍हें अपना कार्य स‍िद्ध होने के बाद उनके घर आने का व‍िश्‍वास द‍िलाया और उन्‍हें व‍िदा कर द‍िया। कालांतर में कृष्‍ण ने उद्धव के साथ कुब्‍जा का आत‍िथ्‍य स्‍वीकार क‍िया। कुब्‍जा के साथ प्रेम क्रीड़ा भी की। कुब्‍जा ने भगवान कृष्‍ण से वर मांगा क‍ि वे चिरकाल तक उसके साथ वैसी ही प्रेम क्रीड़ा करते रहें।
देवी सती का अमर प्रेम
दक्ष के बाद सती ने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां जन्म लिया। मैनावती और हिमवान को कोई कन्या नहीं थी तो उन्होंने आदिशक्ति की प्रार्थना की। आदिशक्ति माता सती ने उन्हें उनके यहां कन्या के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। दोनों ने उस कन्या का नाम रखा पार्वती। पार्वती अर्थात पर्वतों की रानी। माना जाता है कि जब सती के आत्मदाह के उपरांत विश्व शक्तिहीन हो गया। उस भयावह स्थिति से त्रस्त महात्माओं ने आदिशक्तिदेवी की आराधना की। तारक नामक दैत्य सबको परास्त कर त्रैलोक्य पर एकाधिकार जमा चुका था। ब्रह्मा ने उसे शक्ति भी दी थी और यह भी कहा था कि शिव के औरस पुत्र के हाथों मारा जाएगा।
प्रेम का वृत्तान्त सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हुए
शिव को शक्तिहीन और पत्नीहीन देखकर तारक आदि दैत्य प्रसन्न थे। देवतागण देवी की शरण में गए। देवी ने हिमालय (हिमवान) की एकांत साधना से प्रसन्न होकर देवताओं से कहा- 'हिमवान के घर में मेरी शक्ति गौरी के रूप में जन्म लेगी। शिव उससे विवाह करके पुत्र को जन्म देंगे, जो तारक वध करेगा। भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने देवर्षि के कहने मां पार्वती वन में तपस्या करने चली गईं। भगवान शंकर ने पार्वती के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा।
सप्तऋषियों ने पार्वती के पास जाकर उन्हें हर तरह से यह समझाने का प्रयास किया कि शिव औघड़, अमंगल वेषभूषाधारी और जटाधारी है। तुम तो महान राजा की पुत्री हो तुम्हारे लिए वह योग्य वर नहीं है। उनके साथ विवाह करके तुम्हें कभी सुख की प्राप्ति नहीं होगी। तुम उनका ध्यान छोड़ दो। अनेक यत्न करने के बाद भी पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रही। उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने पार्वती को सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद दिया और वे पुन: शिवजी के पास वापस आ गए। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुनकर भगवान शिव अत्यन्त प्रसन्न हुए और समझ गए कि पार्वती को अभी में अपने सती रूप का स्मरण है।
प्रद्युम्न का विचित्र प्रेम
कथा म‍िलती है भगवान शंकर के शाप से जब कामदेव भस्म हो गया तो उसकी पत्नी रति अति व्याकुल होकर पति वियोग में उन्मत्त सी हो गई। उसने अपने पति की पुनः प्रापत्ति के लिये देवी पार्वती और भगवान शंकर को तपस्या करके प्रसन्न किया। पार्वती जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तेरा पति यदुकुल में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेगा और तुझे वह शंबरासुर के यहां मिलेगा। इसीलिये रति शंबरासुर के घर मायावती के नाम से दासी का कार्य करने लगी। इधर कामदेव रुक्मणी के गर्भ में स्थित हो गये। समय आने पर रुक्मणी ने एक अति सुन्दर बालक को जन्म दिया। उस बालक के सौंदर्य, शील, सद्गुण आदि सभी श्री कृष्ण के ही समान थे। जब शंबरासुर को पता चला कि मेरा शत्रु यदुकुल में जन्म ले चुका है तो वह वेश बदल कर प्रसूतिकागृह से उस दस दिन के शिशु को हर लाया और समुद्र में डाल दिया। समुद्र में उस शिशु को एक मछली निगल गई और उस मछली को एक मगरमच्छ ने निगल लिया। वह मगरमछ एक मछुआरे के जाल में आ फँसा जिसे कि मछुआरे ने शंबरासुर की रसोई में भेज दिया। जब उस मगरमच्छ का पेट फाड़ा गया तो उसमें से अति सुन्दर बालक निकला। उसको देख कर शंबरासुर की दासी मायावती के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
इस तरह देवी रत‍ि और प्रद्युम्न का दोबारा म‍िलन हुआ
वह उस बालक को पालने लगी। उसी समय देवर्षि नारद मायावती के पास पहुंचे और बोले कि हे मायावती… यह तेरा ही पति कामदेव है। इसने यदुकुल में जन्म लिया है और इसे शंबरासुर समुद्र में डाल आया था। तू इसका यत्न से लालन-पालन कर। इतना कह कर नारद जी वहां से चले गये। उस बालक का नाम प्रद्युम्न रखा गया। थोड़े ही काल में प्रद्युम्न युवा हो गया। प्रद्युम्न का रूप लावण्य इतना अद्भुत था कि वे साक्षात् श्री कृष्णचन्द्र ही प्रतीत होते थे। रति उन्हें बड़े भाव और लजीली दृष्टि से देखती थी। तब प्रद्युम्न जी बोले कि तुमने माता जैसा मेरा लालन-पालन किया है फिर तुममें ऐसा परिवर्तन क्यों देख रहा हूं? तब रति ने कहा "पुत्र नहीं तुम पति हो मेरे। मिले कन्त शम्बासुर प्रेरे॥ मारौ नाथ शत्रु यह तुम्हरौ। मेटौ दुःख देवन कौ सिगरौ॥ "इतना कह कर मायावती रति ने उन्हें महाविद्या प्रदान की। साथ ही उन्‍हें धनुष-बाण, अस्त्र-शस्त्र आदि सभी विद्याओं में निपुण कर दिया। मान्‍यता है क‍ि इस तरह देवी र


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