भक्तों के जीवन की सभी विघ्न दूर होती हैं गणेश के त्रिनेत्र रूप की उपासना से

उत्तर प्रदेश की काशी नगरी, जिसे भोलेनाथ की नगरी माना जाता है। काशी में भगवान शिव के विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा कौन नहीं

Update: 2021-06-27 10:10 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |   उत्तर प्रदेश की काशी नगरी, जिसे भोलेनाथ की नगरी माना जाता है। काशी में भगवान शिव के विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा कौन नहीं जानता परंतु काशी में ही शिव जी के पुत्र भगवान गणेश अपने विशेष रूप में स्थापित हैं। काशी में स्थापित स्वंयभू भगवान गणेश जी की यह मूर्ति त्रिनेत्र स्वरूप की है। मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता गणेश भगवान के इस त्रिनेत्र रूप की उपासना से भक्तों के जीवन की सभी विघ्न और बाधांए दूर होती हैं तथा मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं।

लोहटिया स्थित 40 खम्भों वाला मंदिर
भगवान गणेश का स्वंभू त्रिनेत्र प्रतिमा वाला यह मंदिर बनारस के लोहटिया नामक स्थान पर स्थित है। इन्हें बड़ा गणेश भी कहते हैं। मान्यता है कि जब काशी में गंगा मां के साथ मंदाकिनी नदी भी बहती थी , उस समय भगवान गणेश की यह प्रतिमा मिली थी। माना जाता है कि उस दिन माघ मास की संकष्टी चतुर्थी का दिन था, तब से इस दिन यहां मेले का आयोजन होता है। गणेश जी का यह मंदिर 40 खम्भों की विशेष शैली में बना है, जो यहां आने वाले सभी भक्तों को आश्चर्य में डाल देता है। मंदिर की प्राचीनता के विषय में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है।

बड़ा गणेश मंदिर की महिमा
लोहटिया स्थित भगवान गणेश के मंदिर में दूर-दूर से भक्त आते हैं। यहां पर भगवान गणेश अपनी दोनों पत्नियां ऋद्धि- सिद्धि और संतानों शुभ-लाभ के साथ विराजमान हैं। मान्यता है कि गणेश जी के इस रूप की उपासना करने से व्यक्ति को ऋद्धि- सिद्धि तथा शुभ-लाभ की प्राप्ति होती है। इस मंदिर में गणेश जी की बंद कपाट पूजा का विशेष महत्व है , जिसे देखने की अनुमति किसी को भी नहीं है। यहां मन्नत मानने वालों और अपने कष्ट दूर करने की मुराद लेकर आने वाले भक्तों की हमेशा भीड़ लगी रहती है। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान के दर्शन का विशेष लाभ होता है।


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