जानें चाणक्य नीति के अनुसार एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण है ये 4 चीजें,रखें ध्यान तो नहीं होगी किसी और वस्तु की आवश्यकता

आचार्य चाणक्य ने जीवन के संदर्भ में कई सारी महत्वपूर्ण बातें अपने नीति शास्त्र में श्लोकों के रूप में लिखी हैं

Update: 2021-04-10 07:57 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आचार्य चाणक्य ने जीवन के संदर्भ में कई सारी महत्वपूर्ण बातें अपने नीति शास्त्र में श्लोकों के रूप में लिखी हैं. इन बातों का अनुसरण अगर हम अपने जीवन में कर लेते हैं तो हमारा जीवन जीना सही मायनों में सफल हो जाएगा. उनकी लिखी गई कई सारी नीतियों को आज याद किया जाता है. हालांकि, उनकी बातों का अनुसरण बहुत ही कम लोग करते हैं. चाणक्य की नीतियां इतनी महत्वपूर्ण हैं कि इसे अपने जीवन में उतारने मात्र से ही आपकी तकदीर बदल सकती है. उन्हीं की नीतियों का असर है कि चंद्रगुप्त मौर्य राजा की गद्दी पर आसीन हुए.

आज पैसा कौन नहीं कमाना चाहता? हालांकि, आज भी कई लोग ऐसे हैं जो पैसों से ज्यादा अहमियत मान-सम्मान को देते हैं और उसके लिए ही जीते हैं. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि एक व्यक्ति को केवल 4 चीजों का ध्यान रखना चाहिए. अगर इनका ध्यान रखा गया, उन चीजों का ज्ञान हो गया और उसके महत्व के बारे में पता चल गया तो उस व्यक्ति को किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता कभी भी नहीं होगी.
नात्रोदक समं दानं न तिथि द्वादशी समा।
न गायत्र्या: परो मन्त्रो न मातुदैवतं परम्।।
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, अन्न और जल के समान कोई दान नहीं है. जो व्यक्ति भूखे अन्न और प्यासे को पानी पिलाता है, वो एक अच्छा इंसान होता है. ऐसे व्यक्ति की देवी-देवता भी सुनते हैं. इसलिए मनुष्य को जीवन में समय-समय पर अन्न का दान करते रहना चाहिए.
आचार्य चाणक्य ने हिंदू महीने की द्वादशी तिथि को सबसे पवित्र कहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस तिथि को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. जो व्यक्ति हिंदू पंचांग की द्वादशी तिथि को पूजा करता है और उपवास रखता है, उसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है.
गायत्री मंत्र हिंदू धर्म के प्रमुख मंत्रों में से एक माना जाता है. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि गायत्री मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नहीं है. ऋषियों ने भी गायत्री मंत्र को बहुत ही प्रभावशाली बताया है. इस मंत्र का जाप करने से आयु, प्राण, शक्ति, धन और ब्रह्मतेज प्राप्त होता है. माता गायत्री को वेदमाता कहा जाता है क्योंकि सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है.
श्लोक के अंत में आचार्य चाणक्य ने माता को इस संसार में सबसे बड़ा तीर्थ देवता या गुरु की संज्ञा दी है. माता की सेवा से समस्त तीर्थों की यात्रा का पुण्य मिलता है. माता के ही चरणों में सभी देवता और तीर्थ होते हैं.


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