नागपंचमी 2022 आज, ज्योतिषाचार्य से जानें कालसर्प दोष की शांति की पूजन विधि

सावन मास के तीसरे मंगलवार को अद्भुत संयोग बनने जा रहा है। इस दिन नागपंचमी का त्योहार मनाया जाएगा। इस साल नाग पंचमी 2 अगस्त, मंगलवार को है। नाग पंचमी का दिन कालसर्प दोष की शांति के लिए पूजन करना लाभकारी माना जाता है। सावन मास के मंगलवार को नाग पंचमी का त्योहार पड़ने से इस दिन का महत्व और बढ़ रहा है।

Update: 2022-08-02 04:11 GMT

सावन मास के तीसरे मंगलवार को अद्भुत संयोग बनने जा रहा है। इस दिन नागपंचमी का त्योहार मनाया जाएगा। इस साल नाग पंचमी 2 अगस्त, मंगलवार को है। नाग पंचमी का दिन कालसर्प दोष की शांति के लिए पूजन करना लाभकारी माना जाता है। सावन मास के मंगलवार को नाग पंचमी का त्योहार पड़ने से इस दिन का महत्व और बढ़ रहा है।

नाग पंचमी की पूजा में इस बात का रखें खास ख्याल, भूलकर भी न करें ये काम

सावन मास के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत का विधान है। यह व्रत माता पार्वती को समर्पित माना गया है। ऐसे में नाग पंचमी के दिन भगवान शंकर के साथ माता पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने का संयोग बन रहा है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, अग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नागों का वर्णन मिलता है। इसमें अनंत, वासुकि, पदम, महापध, तक्षक, कुलिक और शंखपाल प्रमुख माने गए हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु के जन्म नक्षत्र भरणी के देवता काल हैं और केतु के जन्म नक्षत्र के के देवता सर्प हैं। अत: राहु-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर कालसर्प योग कहा जाता है। राशि चक्त्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 288 काल सर्प योग घटित होते हैं।

ऐसे करें कालसर्प की शांति पूजा :

सुबह स्नान के बाद पूजा के स्थान पर कुश का आसन स्थापित करके हाथ में जल लेकर अपने ऊपर और पूजन सामग्री पर छिड़कना चाहिए। फिर संकल्प लेकर कि मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा कर रहा हूं। अत: मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष से मुक्त करें। तत्पश्चात अपने सामने चौकी पर एक कलश स्थापित कर पूजा आरम्भ करें। कलश पर एक पात्र में सर्प-सर्पनी का यंत्र एवं काल सर्प यंत्र स्थापित करें। साथ ही कलश पर तांबे के तीन सिक्के, तीन कौड़ियां सर्प-सर्पनी के जोड़े के साथ रखें। उस पर केसर का तिलक लगाएं, अक्षत चढ़ाएं, पुष्प अर्पित करें तथा काले तिल, चावल व उड़द को पकाकर शक्कर मिलाकर उसका भोग लगाएं। फिर घी का दीपक जलाकर मंत्रोच्चार करना चाहिए।


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