काल भैरव की पूजा करने के बाद जरूर पढ़नी चाहिए ये व्रत कथा

Update: 2022-11-16 04:15 GMT

हिंदू धर्म में काल भैरव जयंती का विशेष महत्व है क्योंकि धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी. पंचांग के अनुसार 16 नवंबर को काल भैरव जयंती मनाई जाएगी और इसे कालाष्टमी भी कहा जाता है. इस दिन भगवान शिव और बाबा भैरव नाथ के साथ मां दुर्गा का पूजन किया जाता है. (Kalashtami Vrat Katha) इस साल यह व्रत कल यानि 16 नवंबर 2022, बुधवार को रखा जाएगा. अगर आप भी कालाष्टमी या काल भैरव जयंती की पूजा और व्रत कर रहे हैं तो व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए. कहते हैं कि बिना व्रत कथा पढ़ें कोई भी पूजा सम्पन्न नहीं होती.

कालाष्टमी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है कि जब भगवान ब्रह्मा, भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान महेश तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चल रही थी. इस बात पर धीरे-धीरे बहस बढ़ती चली गई, जिसको कम करने के लिए सभी देवताओं को बुलाकर एक बैठक की गई.

सभी देवताओं की मौजूदगी में हो रही इस बैठक में सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा, लेकिन उस बात का समर्थन भगवान शिव शंकर और भगवान श्री हरि विष्णु ने तो किया, परंतु भगवान ब्रह्मा ने भोलेनाथ को अपशब्द कह दिए. इस बात पर महादेव को क्रोध आ गया.

बताया जाता है कि भगवान शिव के इस क्रोध से उनके स्वरूप काल भैरव का जन्म हुआ. भोलेनाथ के अवतार काल भैरव का वाहन काला कुत्ता माना जाता है. इनके एक हाथ में छड़ी है. बता दें कि इस अवतार को 'महाकालेश्वर' के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति भी कहा जाता है. कथा के अनुसार, भोलेनाथ के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए.


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