12 सितंबर: जब मिहिर सेन ने डार्डेनेल्स स्ट्रेट को तैरकर पार किया, भारतीय महिला टीम ने शतरंज में अमेरिका को हराया

Update: 2024-09-12 04:58 GMT
नई दिल्ली: नीले पानी के भीतर, जहां सपने गहराई में उतरते हैं और इच्छाशक्ति लहरों से भी मजबूत होती है, वहां लंबी दूरी के तैराक अपनी कहानी लिखते हैं। डायना न्याड ने 64 साल की उम्र में ऐसी कहानी लिखी थी और भारत के मिहिर सेन ने 12 सितंबर 1966 को कुछ ऐसी ही उपलब्धि हासिल की थी। ये एथलीट केवल तैराकी नहीं करते; वे विशाल समुद्रों को पार करते हैं, और मानवीय क्षमता की सीमाओं को चुनौती देते हैं।
भारत के लंबी दूरी के तैराक मिहिर सेन ने 12 सितंबर को डार्डेनेल्स स्ट्रेट को पार किया था। स्ट्रेट जिसे जलडमरूमध्य कहते हैं और आसान भाषा में समझें तो दो बड़े जल निकायों के बीच का संकरा खंड। स्ट्रेट दो महासागरों को जोड़ सकता है। ऐसे ही एजियन और मरमारा सागर को जोड़ने वाला स्ट्रेट है डार्डानेल्स। इसको साल 1966 में मिहिर सेन ने पार किया था। उन्होंने साल 1966 में सिर्फ डार्डानेल्स स्ट्रेट ही नहीं, बल्कि कई और स्ट्रेट्स को भी तैरकर पार किया था।
मिहिर सेन ने उस साल पांच महाद्वीपों के महासागरों को तैरकर पार किया था। उसमें में एक था 12 सितंबर को पार किया गया डार्डेनेल्स स्ट्रेट। इससे पहले वह 5-6 अप्रैल को पाक स्ट्रेट को पार कर चुके थे। 24 अगस्त को जिब्राल्टर स्ट्रेट को पार किया था। यानि एक ही साल में करीब तीन महीनों में ही बड़ी उपलब्धि हासिल की। 12 सितंबर को डार्डेनेल्स को, 21 सितंबर को बोस्फोरस स्ट्रेट को और 29-30 अक्टूबर को पनामा नहर को तैरकर पार किया था।
इससे पहले वह 27 दिसंबर, 1958 को इंग्लिश चैनल को तैरकर पार कर चुके थे। लेकिन यह 1966 का कारनामा था जिसने उन्हें अमर बना दिया। एक कैलेंडर ईयर में पांच महाद्वीपों के महासागरों को पार करने वाले वह पहले व्यक्ति थे। यह एक ऐसी अविश्वसनीय उपलब्धि थी जिसने उन्हें गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान दिलाया था।
इस चमत्कार को संभव करके दिखाने वाले मिहिर सेन का जन्म 1930 में बंगाल में एक मिडिल क्लास फैमिली में हुआ था। तब तैराकी न तो उनके दिमाग में थी और न ही परिवार में। पिता पेशे से चिकित्सक थे और साधारण ग्रामीण जीवनशैली थी। तैराकी में तब मिहिर ऐसे ही थे जैसे गांव के बाकी युवा। 8 साल की उम्र में परिवार बंगाल से ओडिशा चला गया था जहां मिहिर ने कानून की डिग्री हासिल की थी। तब मिहिर को बीजू पटनायक जैसे राजनेता की भी मदद मिली थी और वह शिक्षा के लिए इंग्लैंड चले गए थे।
इंग्लैंड का जीवन भी आसान नहीं था। पढ़ाई के साथ गुजारा करने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। इसी दौरान एक अखबार के लेख ने मिहिर का जिंदगी के प्रति नजरिया बदलने का काम किया। लेख में एक युवा अमेरिकी महिला फ्लोरेंस चैडविक का जिक्र था जो इंग्लिश चैनल को तैरकर पार कर रही थी। यह वह समय था जब मिहिर ने तय कर लिया था कि उनको भी यह कारनामा करके दिखाना है। सिर्फ अपने लिए बल्कि नए आजाद हुए भारत के देशवासियों को भी यह संदेश देने के लिए कि अब बहादुर बनने का वक्त आ गया है।
लेकिन वह प्रशिक्षित तैराक नहीं थे। इंग्लैंड में इसके लिए कई महीनों तक ट्रेनिंग ली। वह तब तक मुश्किल ट्रेनिंग करते रहे, जब तक कि उनकी तैराकी ने स्पीड को हासिल न कर लिया। साल 1955 में इंग्लिश चैनल को पारकर करने की उनकी पहली कोशिश खराब मौसम ने बेकार कर दी थी। आखिर 1958 में 28 साल की उम्र में उन्होंने यह भी करके दिखा दिया था। इंग्लिश चैनल अपने सबसे संकरे रूप में भी 33 मील लंबा है। इसी से सेन का प्रयास समझा जा सकता है।
इस प्रदर्शन ने उस महान उपलब्धि की नींव रखी थी जिसको मिहिर ने 1966 में पूरा किया था। जिसमें से एक थी आज ही के दिन, यानी 12 सितंबर को पूरी की गई 13 घंटे और 55 मिनट की दूरी। उस साल उनके लिए अंतिम और सबसे अहम था पनामा नहर को पार करना जिसके लिए मिहिर सेन को 34 घंटे और 15 मिनट लगे थे।
मिहिर का जीवन भी समुद्र की लहरों की तरह उतार-चढ़ाव से भरा रहा। वह वकालत छोड़ चुके थे। तैराक के तौर पर इतना नाम कमाया कि भारत सरकार से 1959 में पद्मश्री और 1967 में पद्म भूषण मिला था। उन्होंने बिजनेस में भी किस्मत को आजमाया और जल्द ही भारत के दूसरे सबसे बड़े रेशम निर्यातक बन गए। लेकिन धीरे-धीरे उनकी संपत्ति भी उनसे दूर होती गई। उन्होंने राजनीति में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव भी लड़ा। लेकिन अंत में उनका जीवन गुमनामी और निर्धनता में बीता।11 जून, 1997 को कोलकाता में उनका निधन हो गया था।
12 सितंबर को भारतीय खेल में एक और घटना शतरंज की दुनिया में घटित हुई थी। शतरंज, जिसे अक्सर 'राजा का खेल' कहा जाता है, उसमें 'रानियों' ने प्रदर्शन किया था। जब साल 2009 में भारतीय महिला टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए शतरंज चैंपियनशिप के अंतिम दौर में जगह बनाई। इतना ही नहीं संयुक्त राज्य अमेरिका को 3-1 से हराया और सातवें स्थान पर रही थी।
भारतीय शतरंज टीम में तानिया सचदेव ने अन्ना जातोंस्कीख को 47 चालों में हराकर शानदार प्रदर्शन किया था। जबकि ईशा करावडे ने रुसुदान गोलेतियानी को 42 चालों में हराया था। इससे पहले, डी हरिका और इरिना क्रश का मैच ड्रा साबित हुआ था। लेकिन, कृतिका नादिग ने अलीसा मेलेखिना को मात दी थी और भारत को 3-1 से जीत दिलाई थी। हालांकि इस जीत के बावजूद भारतीय टीम प्रतियोगिता जीतने से काफी दूर रह गई थी। उनको टूर्नामेंट में लगातार तीन हार ने काफी झटका दिया था। अमेरिका पर अंतिम दौर में जीत के बावजूद भारतीय महिला टीम 7वें स्थान पर रही थी।
यह चैंपियनशिप चीन के निंगबो में हुई थी जहां दुनिया की 10 बेस्ट टीमों ने हिस्सा लिया था और भारतीय टीम उनमें से एक थी। भारतीय टीम की ओर से हरिका द्रोणावल्ली, तानिया सचदेव, कृत्तिका नादिग, ईशा करावडे और गोम्स मैरी एन ने भाग लिया था। इस चैम्पियनशिप को चीन ने जीता था।
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