प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की चिंता और वहां की स्थिति जल्द ही सामान्य होने के बयान से आशान्वित दिखे सैम पित्रोदा

Update: 2024-08-18 03:40 GMT
नई दिल्ली: इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने आईएएनएस के साथ बातचीत में बांग्लादेश में जारी संकट, पदस्थ पीएम शेख हसीना के साथ ही वहां के अल्पसंख्यकों को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिंता और वहां की स्थिति जल्द ही सामान्य होने के बयान होने पर भी अपनी राय रखी। सैम पित्रोदा ने उम्मीद जताई कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे और भारत के साथ पहले की तरह अच्छे संबंध बनाए रखने की दिशा में भी काम करेंगे।
दरअसल स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के बारे में चिंता व्यक्त की और उम्मीद जताई कि स्थिति जल्द ही सामान्य हो जाएगी। इस पर सैम पित्रोदा ने कहा कि मैं उनसे (पीएम नरेंद्र मोदी ) सहमत हूं और हमें भारत सहित हर जगह अल्पसंख्यकों के बारे में चिंतित होना चाहिए। उम्मीद है कि यूनुस इस पर काम करने की अपनी प्रतिबद्धता का पालन करेंगे।
वहीं स्वतंत्रता दिवस के भाषण में, पीएम मोदी ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के अपने आह्वान को दोहराया। उस पर राय रखते हुए सैम पित्रोदा ने इसे सिरे से खारिज कर दिया और कहा कि भारत में एक बार चुनाव कराना संभव नहीं है, क्योंकि हमारे यहां 30 राज्य हैं। यह व्यावहारिक नहीं है। कुछ लोग एकरूपता चाहते हैं, लेकिन भारत विविधता का पक्षधर है। भारत में एकरूपता नहीं हो सकती, क्योंकि यह विविधता पर पनपता है। यहां कई चुनाव, भाषाएं, संस्कृतियां और विचार हैं, यही भारत है। भारत पर एकरूपता थोपो मत, यह काम नहीं करेगा। सत्तावादी मानसिकता वाले लोग यही करने की कोशिश करते हैं। यह लंबे समय तक काम नहीं करता। पीएम की प्रवृत्ति कई चीजों को लेकर झूठ बोलने की है, इसलिए मैं उन पर ध्यान नहीं देता।
वहीं सैम पित्रोदा से जब आईएएनएस की तरफ से सवाल किया गया कि भारत में आरक्षण को लेकर बहस छिड़ी हुई है। एससी और एसटी के बीच क्रीमी लेयर पर आपकी क्या राय है? क्या क्रीमी लेयर को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए? इस पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि, यह बहुत जटिल सवाल है। इसका जो मतलब है वह यह है कि हमें बड़ी संख्या में लोगों को निचले स्तर से ऊपर उठाने की जरूरत है जो कई तरह से वंचित हैं - नौकरी, शिक्षा - और हमारी प्राथमिकता उन्हें उठाना है, और यह दर्दनाक होने वाला है। यह आसान नहीं है।
अमेरिका में हम अल्पसंख्यकों के साथ ऐसी ही स्थिति पाते हैं। असमानता और बहिष्कार चुनौतियां हैं और हम हर किसी को खुश नहीं कर सकते। दुर्भाग्यवश, भारत में जाति का एक अतिरिक्त आयाम भी है। मुझे इसकी परवाह नहीं है कि कौन ब्राह्मण है और कौन नहीं, लेकिन समाज को इसकी परवाह है, इसलिए लोगों को इससे बाहर निकालना हमारा काम है।
हमें विश्वविद्यालयों, बैंकों आदि में प्रमुख पदों पर बैठे एससी/एसटी/ओबीसी लोगों की संख्या पर गौर करने की जरूरत है। जैसा कि राहुल गांधी ने कहा है, शीर्ष 10 प्रतिशत लोग 90 प्रतिशत नौकरियों पर नियंत्रण रखते हैं। यहां बहुत प्रतिभा है और किसी को भी इसे कम नहीं आंकना चाहिए। उनके (एससी/एसटी/ओबीसी) पास डिग्री नहीं हो सकती है, लेकिन वे कारीगर, शिल्पकार और संगीतकार हैं और वे अधिकांश काम करते हैं। वे चीजें बनाते हैं, लेकिन उन्हें अर्थव्यवस्था में वह सम्मान और हिस्सा नहीं मिलता जिसके वे हकदार हैं।
वहीं आईएएनएस के सवाल पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में यह भी कहा कि देश का एक बड़ा वर्ग मानता है कि हमें सांप्रदायिक नागरिक संहिता से धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की ओर बढ़ना चाहिए। इस पर सैम पित्रोदा ने कहा कि मुझे नहीं पता मैं कानूनी विशेषज्ञ नहीं हूं। मैं समानता, समावेशन और विविधता में विश्वास करता हूं। वकीलों को इसे सुलझाना होगा। मैं इस पर टिप्पणी करने के योग्य नहीं हूं।
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