रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने रविवार को चुनाव आयोग के उस टैगलाइन का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि "एक भी वोटर छूटना नहीं चाहिए।"
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हर मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए। भट्टाचार्य ने इस संदर्भ में चुनाव आयोग की नीतियों और निर्णयों की समीक्षा की आवश्यकता पर भी बल दिया, ताकि चुनाव प्रक्रिया में सभी वोटर्स को समान अवसर मिल सके। उनका मानना है कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह जरूरी है कि हर व्यक्ति को मतदान में भाग लेने का अवसर दिया जाए।
उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग की यह टैगलाइन निश्चित रूप से लोगों का ध्यान आकर्षित करती है और चुनाव आयोग का उद्देश्य भी स्पष्ट करती है कि हर मतदाता को वोट डालने का अधिकार है। जब मुख्य चुनाव आयुक्त रांची आए थे, तो उन्होंने पत्रकारों के साथ बातचीत की। शुरुआत में उनका प्रेस वार्ता का कोई कार्यक्रम नहीं था। लेकिन, जब पत्रकारों ने उनसे बात की, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वे सभी राजनीतिक दलों को एक समान अवसर प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “चुनाव आयोग का यह प्रयास है कि चुनाव भयमुक्त और शांतिपूर्ण ढंग से हों, ताकि हर मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सके। खासतौर पर 80 वर्ष से ऊपर के वोटर्स और दिव्यांग मतदाताओं के लिए घर से वोट देने की सुविधा का भी आश्वासन दिया गया था। लेकिन, जब आधिकारिक सूचना आई, जिसमें गजट का उल्लेख था, तो उसमें विधानसभा क्षेत्रों का चुनाव किया गया था और ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले मजबूत क्षेत्रों का चयन किया गया है।”
उन्होंने कहा, “यहां पर एक तथ्य सामने आया कि झारखंड में 88 प्रतिशत ग्रामीण वोटर हैं और 12 प्रतिशत शहरी। चुनाव आयोग ने निर्णय लिया कि शहरी मतदाताओं को एक घंटे का अतिरिक्त समय दिया जाएगा, जबकि ग्रामीण वोटरों को एक घंटे का कम समय दिया जाएगा। इस निर्णय को लेकर काफी सवाल उठ रहे हैं। जब शहरी वोटर पांच बजे तक वोट डाल सकते हैं, तो ग्रामीण वोटर को 24 बजे तक ही वोट डालने का समय क्यों दिया गया?”
उन्होंने कहा, “इस परिप्रेक्ष्य में यह लगता है कि चुनाव आयोग की नीति में एक प्रकार का भेदभाव है। उन्होंने झारखंड को नक्सल प्रभावित क्षेत्र से बाहर निकालने का प्रयास किया है। लेकिन, यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण इलाकों के वोटरों को कम समय दिया जा रहा है।”
उन्होंने कहा, “इस पूरी स्थिति को देखकर लगता है कि "बंटी-बबली" का खेल चल रहा है, जिसमें कुछ वोटरों को जानबूझकर प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि दूसरों को हाशिए पर रखा जा रहा है। यह सब एक बार फिर दर्शाता है कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की आवश्यकता है। ऐसी परिस्थितियों में चुनाव आयोग को अपनी नीतियों में सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि हर वोटर को समान अवसर मिले और लोकतंत्र की भावना को मजबूत किया जा सके।”