नई दिल्ली: नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वीके पॉल ने शुक्रवार को कहा कि एक मजबूत प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का दूरगामी लाभ हो सकता है और डिजिटल समाधान ग्रामीण, दूरदराज और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की पहुंच के भीतर होना चाहिए।
राजधानी में आयोजित एक सम्मेलन में डॉ. पॉल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में परिवर्तनकारी बदलाव हो रहे हैं। उन्होंने कहा, "हमें रोबोटिक्स और एआई जैसी नई प्रौद्योगिकियाें का विकास करना चाहिए, लेकिन यह इस तरह होना चाहिए, ताकि लोग आसानी से इसका इस्तेमाल कर सकें।"
उन्होंने जोर देकर कहा, "हमें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि डिजिटल समाधान अधिकारों के दायरे में हों और समावेशिता, मानवाधिकारों की सुरक्षा और लोकतंत्रीकरण को बढ़ावा दें। साथ ही लाभार्थियों को साइबर धोखाधड़ी से बचाने पर भी ध्यान दें।" डिजिटल समाधानों को जीवन को आसान बनाने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना चाहिए, न कि लोगों के लिए इसे और अधिक जटिल बनाना चाहिए।
डॉ. पॉल के अनुसार, इनसे जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होनी चाहिए, खुशहाली को अपनाना चाहिए, पारंपरिक ज्ञान को शामिल करना चाहिए और हमारे स्वास्थ्य देखभाल कार्यों में तेजी लानी चाहिए। स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा कि राष्ट्रीय डिजिटल मिशन का एक लक्ष्य स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाना और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच असमानता को कम करना है।
उन्होंने कोविन और आरोग्य सेतु ऐप की सफलता पर प्रकाश डाला, जिससे देश भर में 220 करोड़ से अधिक टीकाकरण करने में मदद मिली। चंद्रा ने इस महीने के अंत में यू-विन पोर्टल के लॉन्च होने के बारे में जानकारी देते हुए कहा, "सरकार आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के माध्यम से उसी मॉडल को दोहराना चाहती है। "
यह पोर्टल तीन करोड़ से अधिक गर्भवती महिलाओं और माताओं व सालाना पैदा होने वाले लगभग 2.7 करोड़ बच्चों के टीकाकरण और दवाओं का स्थायी डिजिटल रिकॉर्ड रखेगा। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के महासचिव भरत लाल ने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल एक बुनियादी मानव अधिकार है और अच्छे स्वास्थ्य के बिना, मनुष्य की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सकता है।