म्‍यांमार में एक वर्ष में दोगुनी हुई घर छोड़ने को मजबूर हुए बेघरों की संख्‍या, यूएन ने कहा- इन लोगों को मदद की दरकार

म्यांमार में जब से सेना ने सत्ता अपने हाथों में ली है तब से ही यहां पर सैन्य शासन का विरोध करने वालों के गायब होने और यहां से बेघर हुए लोगों की संख्‍या भी काफी बढ़ गई है।

Update: 2022-02-13 05:32 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। म्यांमार में जब से सेना ने सत्ता अपने हाथों में ली है तब से ही यहां पर सैन्य शासन का विरोध करने वालों के गायब होने और यहां से बेघर हुए लोगों की संख्‍या भी काफी बढ़ गई है। संयुक्‍त राष्‍ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी के मुताबिक फरवरी 2021 से अब तक बेघर हुए लोगों की संख्‍या दोगुनी हो चुकी है। यूएन के मुताबिक ये संख्‍या अब आठ लाख को भी पार कर चुकी है। जिनेवा में इसकी जानकारी देते हुए यूएनएचआरवी के प्रवक्‍ता मैथ्‍यू सल्‍तमार्श ने कहा कि तमाम मुश्किलों के बीच इन लोगों को मदद करने की पूरी कोशिश की जा रही है। सेना द्वारा सत्‍ता हथियाने के बाद से ही पूरे देश में आम लोगों और सेना के बीच संघर्ष चल रहा है। इसकी वजह से म्‍यांमार में हालात काफी खराब हो गए हैं। इन हालातों के सुधरने का फिलहाल कोई संकेत भी दिखाई नहीं दे रहा है।

मैथ्‍यू के मुताबिक बीते वर्ष फरवरी तक देश में करीब 4.40 लाख लोगों को अपना घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था। इसकी वजह देश का सैन्‍य शासन बना था। सेना ने देश की चुनी हुई आंग सू की की सरकार का तख्‍ता पलट कर शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी। इससे पहले ये संख्‍या 3.70 लाख थी। संयुक्‍त राष्‍ट्र के बयान में कहा गया है कि यूएन की रिफ्यूजी एजेंसी का मानना है कि आने वाले समय में ये संख्‍या और अधिक बढ़ेगी और हालात भी खराब होंगे।
बता दें कि बीते वर्ष 1 फरवरी को सेना ने म्‍यांमार की चुनी गई सरकार का तख्‍तापलट किया था। सेना के सत्‍ता अपने हाथों में लेने के बाद देश में खाने-पीने की जरूरी चीजों के दामों में जबरदस्‍त तेजी देखने को मिली है। लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है। लोगों के पास रोजगार खत्‍म हुए हैं। जरूरी सेवाओं पर भी इसका असर पड़ा है। इसके अलावा लोगों को अब अपने भविष्‍य की सुरक्षा भी सताने लगी है।
यूएन के बयान में कहा गया है कि इसकी वजह ये यहां के लोगों को मानवीय आधार पर सहायता देनी जरूरी हो गई है। उनके जीवन यापन और भविष्‍य की सुरक्षा के लिए भी ये काफी जरूरी है। रखाइन प्रांत के करीब छह लाख रोहिंग्‍या शरणार्थी, जिनमें से करीब 1.48 लाख लोग अपने घरों को छोड़कर कैंपों में रहने को मजबूर हैं। इन लोगों को मदद की सख्‍त जरूरत है।
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