कुल्ले के पानी से भी किया जा सकता है कोरोना टेस्ट...ICMR की रिपोर्ट में दावा...खर्च में हो सकती है कटौती...जानिए बड़ी बाते

Update: 2020-08-21 04:38 GMT

नई दिल्ली. कोविड-19 टेस्ट (Covid-19 Test) के लिए मुंह और नाक के स्वैब का विकल्प कुल्ला किया गया पानी (Gargled Water) बन सकता है. ऐसा इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council Of Medical Research) के जर्नल में प्रकाशित एक शोध में दावा किया गया है. शोध में कहा गया है कि टेस्ट के लिए कुल्ले के पानी का प्रयोग करना ज्यादा आसान है और इसके सैंपल कलेक्शन के लिए किसी मेडिकल प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी.

खर्च में हो सकती है कटौती
शोध में यह भी कहा गया है कि कुल्ले के पानी के इस्तेमाल से टेस्टिंग किट और तरह के बचाव उपकरणों का प्रयोग न होने से खर्च में भी कमी आएगी. गौरतलब है कि वर्तमान कोविड टेस्टिंग नियमों के अनुसार टेस्ट किए जाते वक्त मेडिकलकर्मी को पीपीई किट पहनना होता है.

इन डॉक्टरों ने किया शोध
Gargle lavage as a viable alternative to swab for detection of SARS-CoV-2 नामक इस शोध के शोधकर्ता एम्स के मडिसिन डिपार्टमेंट के डॉ. नवनीत विज, डॉ. मनीष सोनेजा, डॉ. नीरज निश्चल और अंकित मित्तल हैं. साथ में एम्स के एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर डिपार्टमेंट के डॉ. अंजन त्रिखा और डॉ. कपिल देव भी हैं.

स्वैब कलेक्शन में हैं कई खामियां
स्वैब कलेक्शन की प्रक्रिया में कई सारी खामियां हैं. साथ ही इसके लिए ट्रेनिंग की भी जरूरत है. हेल्थ केयर वर्कर्स के संक्रमित हो जाने का भी खतरा ज्यादा बना रहता है. एक वैकल्पिक सैंपल व्यवस्था की इस वक्त बड़ी जरूरत है.

मई और जून महीने के दौरान हुए सैंंपल टेस्ट
शोध में कहा गया है कि वैकल्पिक तौर कुल्ले के पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस स्टडी के लिए मई और जून महीने के दौरान एम्स में सैंपल कलेक्शन किए गए थे. 50 कोरोना संक्रमित लोगों पर किए टेस्ट के दौरान सभी के कुल्ले के पानी में कोविड-19 वायरस के मिले.

स्वैब कलेक्शन के दौरान लोगों को महसूस होती है असहजता
गौरतलब है कि कोविड-19 टेस्ट के लिए स्वैब कलेक्शन कई लोगों के लिए बेहद मुुश्किल भरी प्रक्रिया भी होती है. शोध में कहा गया है कि स्वैब कलेक्शन के दौरान करीब 72 प्रतिशत लोगों को असहजता महसूस होती है. वहीं कुल्ले के पानी का सैंपल देने के दौरान सिर्फ 24 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें थोड़ी दिक्कत महसूस हुई.

बता दें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले से कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की मुहिम को युद्ध स्तर तक ले जाने की बात कर चुके हैं. रूस में वैक्सीन का उत्पादन शुरू हो गया है. भारत, ब्रिटेन, अमेरिका और चीन वैक्सीन ट्रायल के तीसरे चरण में पहुंच गए हैं. ऐसे में सवाल उठता की वैक्सीन कब तक, किस तरह और किस किसको दी जाए? इसके लिए राष्ट्रीय टीकाकरण की उच्चस्तरीय कमेटी का गठन नीति आयोग के स्वास्थ्य सदस्य डॉ बीके पौल की अध्यक्षता में हो चुकी है.

भारत में वैक्सीन का प्री क्लिनिकल ट्रायल पूरा हो चुका है. मानव परीक्षण का पहला और दूसरा चरण भी सफल रहा है. तीसरे चरण में वैक्सीन का ट्रायल पहुंच गया है. तीसरे चरण में बड़े जन समूह में टीकाकरण का परीक्षण किया जाता है

वैक्सीन देने के लिए भी क्रम निर्धारण करने की रणनीति शुरू हो गई है. जैसी सबसे पहले मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी, सुरक्षा सेवाओं के जवानों यानी करोना वरियर को वैक्सीन दी जाएगी. वैक्सीन की ब्लैक मार्केटिंग को रोकने के लिए वैक्सीन के उत्पादन से लेकर वितरण तक की जियो टैगिंग होगी. इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस और डिजिटल रूप से रखी जाएगी पूरी प्रक्रिया पर नजर.

पल्स पोलियो अभियान से लेकर बच्चों को दी जाने वाली वैक्सीन तक भारत में टीकाकरण के कई स्तर पर मुहिम चलाई जा चुकी है. देश में फार्मा उद्योग और सरकारी तंत्र राष्ट्रीय टीकाकरण के लिए विकसित हैं. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि जैसे ही कोविड-19 वैक्सीन को अनुमति मिलेगी युद्ध स्तर पर टीकाकरण का कार्यक्रम शुरू हो जाएगा.

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