महिला की मौत: 'पहली बार नया वाहन चलाया होगा'...लड़के को बड़ी राहत, जानें मामला
निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था.
औरंगाबाद: बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने एक महिला को अपनी बाइक से टक्कर मारने के बाद उसकी मौत का कारण बनने के लिए एक युवक की सजा को बरकरार रखा. लेकिन कोर्ट ने उसे यह देखते हुए प्रोबेशन दी है कि अप्रैल 2013 में दुर्घटना के समय वह केवल 18 वर्ष का था और महिला को टक्कर मारने का उसका कोई इरादा नहीं था. न्यायमूर्ति एसजी महरे की पीठ अक्षय खांडवे द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
अक्षय खांडवे ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसने उसे तेज गति और लापरवाही से गाड़ी चलाने के लिए तीन महीने की जेल की सजा सुनाई थी, जिसके कारण अपने घर के बाहर बैठी एक बुजुर्ग महिला की मौत हो गई थी. पीठ ने खांडवे की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि उसकी उम्र और अन्य कारणों को देखते हुए क्रिमिनल प्रोबेशन एक्ट का लाभ उसे दिया जा सकता है. पीठ ने कहा कि दुर्घटना के समय खांडवे ने केवल 18 वर्ष की आयु पूरी की थी.
न्यायाधीश मेहरे ने कहा, 'वह एक किशोर था. उत्साह और खुशी में, उसने पहली बार नया वाहन चलाया होगा और नियंत्रण खो दिया होगा. उसकी उम्र और जिस तरह से दुर्घटना हुई, ये ऐसे तथ्य हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए. खांडवे के पास किसी दुर्घटना या किसी की मृत्यु का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है. उसके सामने पूरा भविष्य पड़ा है. वह दोषसिद्धि के कलंक को लेकर आशंकित है जिससे उसका भविष्य बर्बाद हो सकता है. अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम की धारा 4 (अच्छे आचरण के लिए परिवीक्षा पर रिहाई) के तहत खांडवे को रिहा करना उचित है.'
इस तरह पीठ ने अक्षय खांडवे की दोषसिद्धि को बरकरार रखा लेकिन सजा देने के बजाय उसे प्रोबेशन पर रिहा करने का आदेश दिया. घटना 20 अप्रैल, 2013 की है, जब अक्षय खांडवे सिर्फ 18 वर्ष का था. उसने कथित तौर पर बिना रजिस्ट्रेशन नंबर वाली अपनी नई बाइक, तेजी और लापरवाही से चलाई और अपने घर के बाहर बैठी एक महिला को टक्कर मार दी. 7 मई 2013 को महिला की मौत हो गई. खांडवे पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304-ए (लापरवाही से मौत का कारण) और मोटर वाहन अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत आरोप लगाया गया था.
अक्षय खांडवे ने घटना के समय अपनी उम्र को आधार बनाते हुए अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के तहत कोर्ट से सजा में छूट की भी मांग की थी. पीठ ने कहा कि निचली अदालत द्वारा इस मामले में आरोपी अक्षय खांडवे को दी गई सजा 'अवैध या अनुचित' नहीं है. हालांकि, बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने अपने आदेश में कहा कि क्रिमिनल प्रोबेशन एक्ट के प्रावधानों का लाभ याचिकाकर्ता को दिया जा सकता है.