बिहार उपचुनाव में क्या चिराग पासवान को LJP का सिंबल मिलेगा ?

दोनों विधानसभा सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारेंगे. वहीं चिराग पासवान भी अपने कैंडिडेट उतारेंगे. लेकिन समस्या यह है कि इन दोनों के कैंडिडेट में एलजेपी का सिंबल किसे मिलेगा

Update: 2021-09-27 12:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :-  बिहार में तारापुर और कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं और इन सीटों पर जहां एक ओर चिराग पासवान अपने कैंडिडेट उतारेंगे‌, वहीं दूसरी और उनके चाचा पशुपति पारस अपने कैंडिडेट उतारेंगे. अब देखना यह होगा कि एलजेपी के असली सिंबल पर किसका कैंडिडेट चुनाव लड़ता है.बिहार में चाचा बनाम भतीजे की राजनीतिक उठापटक खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है. पिता रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की मृत्यु के बाद जिस तरह से चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया उसकी वजह से उनके हाथ से पार्टी की कमान चली गई और अध्यक्ष बन गए उनके सगे चाचा पशुपति पारस (Pashupati Paras, ). चिराग पासवान के सामने नई मुसीबत यह खड़ी है कि आने वाले बिहार विधानसभा उपचुनाव में उनके पास शायद लोक जनशक्ति पार्टी का सिंबल भी ना रहे. दरअसल बिहार के तारापुर और कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीटों पर जल्द ही उपचुनाव होने वाले हैं. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस इन दोनों विधानसभा सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारेंगे. वहीं चिराग पासवान भी अपने कैंडिडेट उतारेंगे. लेकिन समस्या यह है कि इन दोनों के कैंडिडेट में एलजेपी का सिंबल किसे मिलेगा?

जाहिर सी बात है आधिकारिक रूप से अध्यक्ष फिलहाल पशुपति पारस हैं, लेकिन चिराग पासवान का खेमा उन्हें एलजेपी का अध्यक्ष नहीं मानता है और कहता है कि उनकी अध्यक्ष पद पर नियुक्ति पूरी तरह से गैर संवैधानिक है. यही वजह है कि चिराग पासवान ने चुनाव आयोग को एक पत्र लिखा है जिसमें कहा गया है कि केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस का लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पद पर दावा पूरी तरह से झूठा और बेबुनियाद है. इसलिए चुनाव आयोग को इस दावे को तारापुर और कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीट के उपचुनाव की अधिसूचना के एक सप्ताह या उससे पहले पशुपति पारस के दावे को निरस्त कर देना चाहिए.
पार्टी सिंबल पर किसकी दावेदारी भारी होगी
चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों ही धड़े तारापुर और कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार जरूर उतारेंगे. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग किसे एलजेपी का पार्टी सिंबल देता है. चुनाव आयोग यह फैसला लेने के लिए देखेगा कि किसका खेमें का संगठनात्मक और विधायक विंग में बहुमत है. हालांकि अभी तक चुनाव आयोग से एलजेपी के चुनाव चिन्ह और नाम पर केवल चिराग पासवान ने ही दावा किया है. पशुपति पारस की ओर से अभी तक ऐसा कोई दावा नहीं किया गया.
दरअसल चिराग पासवान का खेमा शुरू से ही पशुपति पारस की नियुक्ति को अवैध मानता है. उसका कहना है कि पशुपति पारस को जिस तरह से राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एलजेपी का नया अध्यक्ष चुना गया, यह (चुनाव चिन्ह आरक्षण और आवंटन आदेश 1968 के नियम 15) की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है. क्योंकि एलजेपी के पार्टी संविधान में 2014 में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में संशोधन किया गया था. और 2017 में सभी जिला अध्यक्षों के समूह द्वारा इसे अनुमोदित किया गया था. जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष के कार्यकाल को 3 साल से बढ़ाकर 5 साल कर दिया गया था और राष्ट्रीय अध्यक्ष को तभी बदला जा सकता था जब तक कि वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अपनी स्वेच्छा से यह पद ना छोड़ दे या फिर उसकी मृत्यु हो जाए. जबकि चिराग पासवान 2019 में अध्यक्ष चुने गए थे. जिस पर उनके पिता और वर्तमान अध्यक्ष रामविलास पासवान के हस्ताक्षर थे इसलिए चिराग पासवान की मर्जी के बिना पशुपति पारस को अध्यक्ष नियुक्त करना चिराग पासवान का खेमा पूरी तरह से गैर संवैधानिक मानता है.
तारापुर और कुशेश्वरस्थान का चुनाव डिसाइड करेगा पार्टी और बिहार में किसका वर्चस्व है
बिहार के 2 विधानसभा सीटों पर जल्द ही उप चुनाव होने वाले हैं और यह मौका चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों के लिए खास है क्योंकि इसी चुनाव से फैसला हो जाएगा कि आने वाले समय में बिहार की जनता पशुपति पारस के साथ है या उसकी सिंपैथी चिराग पासवान के साथ है. दरअसल तारापुर से मेवालाल चौधरी और कुशेश्वरस्थान से शशिभूषण हजारी विधायक पहले विधायक थे. लेकिन इन दोनों ही विधायकों का असमय निधन हो गया. जिसके चलते अब वहां जल्द ही उपचुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस भी भाग लेगी. ऐसे में चिराग पासवान के लिए इस सीट पर जीत दर्ज करना बेहद मुश्किल साबित हो सकता है.
मेवालाल चौधरी और शशि भूषण हजारी दोनों ही जेडीयू के खाते से विधायक थे. इसलिए जेडीयू फिर से इन सीटों को जीतने की पूरी कोशिश करेगी. पिछले विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने इन दोनों विधानसभा सीटों से अपने प्रत्याशी उतारे थे. जहां तारापुर से एलजेपी की मीना देवी को 11,000, वहीं कुशेश्वरस्थान से पूनम कुमारी को सिर्फ 13,362 वोट ही मिले थे. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चिराग पासवान ऐसा कोई बड़ा चमत्कार कर पाएंगे कि इतनी कम संख्या में जिनके प्रत्याशियों को वोट मिला हो वह इस उपचुनाव में जीत दर्ज कर लें.
जनता के बीच चिराग पासवान ज्यादा लोकप्रिय
चिराग पासवान आज भले ही लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष ना हों. लेकिन जनता के बीच उनकी लोकप्रियता वर्तमान एलजीपी अध्यक्ष पशुपति पारस से कई गुना ज्यादा है. पिता रामविलास पासवान की मौत के बाद एक तो जनता की सिंपैथी पहले ही उनके साथ थी. ऊपर से चाचा पशुपति पारस ने जिस तरह से चिराग पासवान के साथ व्यवहार किया और उन्हें उन्हीं की गद्दी से बेदखल कर दिया, ने जनता के बीच चिराग की पैठ और मजबूत कर दी. पिता रामविलास पासवान की पहली बरसी के वक्त बिहार में जनसंपर्क यात्रा जिस तरह से चिराग पासवान ने सफलतापूर्वक किया और जिस तरह का उन्हें जनसमर्थन मिला. उसे देखकर राजनीतिक हलके में यह चर्चा शुरू हो गई थी कि पशुपति पारस भले ही पार्टी हथिया लें लेकिन जनता का समर्थन आज भी चिराग पासवान के साथ ही है.


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