जब हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर की ये टिप्पणी...जानें पूरा मामला

Update: 2022-06-05 05:50 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि भारत में भाई अपनी तलाकशुदा बहन को अकेला नहीं छोड़ता है, ऐसे में अदालतों को व्यक्ति की पत्नी के पक्ष में भरण-पोषण का आदेश पारित करते समय अपनी बहन के समर्थन में भाई के द्वारा किए गए खर्च को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि बहन को अपने पति से भरण-पोषण मिलता है, बावजूद इसके जब भी उसे भाई की सहायता की आवश्यकता होती है, तो भाई उसके दुख के लिए मूक दर्शक बना नहीं रह सकता है।
जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने अपने आदेश में कहा है कि भाई-बहन का सहयोग करने के लिए उसके खर्च की सूची में कुछ प्रावधान किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा है कि व्यक्ति की आय को विभाजित करते समय उसकी आय का एक हिस्सा बहन के सहयोग के नाम पर विभाजित नहीं किया जा सकता है।
हालांकि, कुछ रकम वार्षिक आधार पर खर्च के रूप में तलाकशुदा बहन के लिए अलग रखी जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर यह टिप्पणी की है। महिला ने फैमिली कोर्ट द्वारा तय किए गए छह हजार रुपये प्रतिमाह गुजाराभत्ता के आदेश को चुनौती दी थी। साथ ही, गुजराभत्ता की रकम बढ़ाने की मांग की थी।
महिला के पति ने दूसरी शादी कर ली है और इससे उसका एक बच्चा भी है। व्यक्ति ने हाईकोर्ट को बताया कि उस पर अपनी नई पत्नी और बच्चे के अलावा 79 साल के बुजुर्ग पिता और तलाकशुदा एक बहन की जिम्मेदारी है।
हाईकोर्ट ने कहा है कि रिश्तों को हर मामले में गणितीय सूत्र में कैद नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रत्येक मामले का निर्णय उसकी विशेष और विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए, जो अदालत के विवेक पर निर्भर करता है। कोर्ट ने कहा है कि गुजाराभत्ता से जुड़े मामलों में वित्तीय क्षमता के संदर्भ में गणना की जानी चाहिए, लेकिन इसे पारिवारिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए करने की आवश्यकता है। हाईकोर्ट ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को संशोधित करते हुए महिला के पति को निर्देश दिया है कि वह अलग रह रही पत्नी को छह हजार के बजाय 7500 रुपये हर माह गुजाराभत्ता दें।
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