वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो होने में क्या हर्ज है? हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकारा
नई दिल्ली: वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो को लेकर दायर याचिका की विश्वसनीयता पर केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को सवाल उठाया। याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस पीपी कुन्हीकृष्णन ने याचिकाकर्ता से कहाकि अगर किसी पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर देश की यूनिवर्सिटी का नाम हो सकता है तो वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो होने में क्या हर्ज है? याचिकाकर्ता फिलहाल जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूटी ऑफ लीडरशिप के साथ काम कर रहे हैं।
वह हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं, गैर देश के नहीं
जस्टिस पीपी कुन्हीकृष्णन ने कहाकि वह हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं, किसी गैर देश के नहीं। उन्हें देश की जनता ने चुना है। केवल अपने राजनीतिक मतभेद के चलते आप इस तरह से चीजों को चैलेंज नहीं कर सकते हैं। उन्होंने याचिकाकर्ता से पूछा कि आप अपने प्रधानमंत्री को लेकर शर्मिंदा क्यों हैं? देश के 100 करोड़ लोगों को इससे कोई दिक्कत नहीं है तो फिर आपको क्या परेशानी है? जज ने कहाकि आप कोर्ट का वक्त जाया कर रहे हैं। याचिकाकर्ता पीटर म्यालपरांभिल ने अक्टूबर में वैक्सीन सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की तस्वीर को लेकर कोर्ट का रुख किया था। पीटर ने सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री की तस्वीर को गैरजरूरी बताया था। याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वकील अजीत एम रॉय का कहना था कि वैक्सीन सर्टिफिकेट उनका प्राइवेट मामला है इस पर उनके कुछ अधिकार हैं। वकील ने यह भी कहा था कि चूंकि याचिकाकर्ता ने वैक्सीन लगवाने के लिए फीस दी है, इसलिए सरकार का कोई अधिकार नहीं बनता कि वह इसपर किसी तरह से क्रेडिट ले। साथ ही उन्होंने बिना पीएम की इमेज वाले सर्टिफिकेट के विकल्प की भी मांग की थी।
कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी थी कि बहुत से अन्य देशों में वैक्सीन सर्टिफिकेट पर राष्ट्रप्रमुख की फोटो नहीं है। इसके जवाब में कहाकि हो सकता है कि उन देशों को अपने प्रधानमंत्री पर गर्व न हो, लेकिन हमें है। जज ने कहाकि उन्हें देश ने चुना है। हमारा विचारधाराएं अलग हो सकती हैं, लेकिन इसके बावजूद वह देश के प्रधानमंत्री हैं। वहीं केंद्र सरकार की तरफ से पेश वकील ने कहाकि प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ उनका संदेश लोगों में जागरूकता फैलाएगा और कोरोना से बचाव को प्रेरित करेगा। उन्होंने यह भी कहाकि उच्च सदन में इसी तरह का सवाल आने के बाद स्वास्थ्य राज्य मंत्री बीपी पवार ने भी कहा था कि प्रधानमंत्री की तस्वीर जागरूकता फैलाने के लिए आदर्श है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने मामले में विस्तार से जानकारी मांगी और बाद में फैसला सुनाने की बात कही।
23 नवंबर को कही थी यह बात
वहीं 23 नवंबर को हुई पिछली सुनवाई में इसी कोर्ट की एक अन्य बेंच ने भी याचिकाकर्ता की बातों पर असहमति जताई थी। बेंच ने कहा था कि इस तरह तो कल को कोई इस बात के लिए भी याचिका दाखिल कर देगा कि नोट पर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीरें हटाई जानी चाहिए। तब इस बात की इजाजत कैसे दी जाएगी? हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने तब यह दलील दी थी कि नोट पर महात्मा गांधी की तस्वीर आरबीआई के नियमों के तहत लगाई गई है। जबकि प्रधानमंत्री की तस्वीर किसी कानूनी प्रावधान या नियम के तहत नहीं लगाई गई है।