Shimla. शिमला। वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद देहरादून की महानिदेशक कंचन देवी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के कारण झरने सूख रहे हैं। पहाड़ी राज्यों में पेयजल की कमी के रूप में इसका असर देखने को मिल रहा है। झरना वह स्थान है, जहां जमीन के नीचे से पानी प्राकृतिक रूप से सतह पर बहता है। वह सोमवार को हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला ने भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के लिए जल संरक्षण के लिए स्प्रिंगशेड प्रबंधन और सतत जल प्रबंधन विषय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहीं थी। भारत और पूरी दुनिया विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में पानी की कमी के कई कारण हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में विशेषकर पहाड़ी चोटियों पर पानी की उपलब्धता महत्त्वपूर्ण है। अधिकांश पर्वतीय राज्यों में जल आपूर्ति झरनों पर निर्भर है।
देश के सभी पर्वतीय क्षेत्रों में उचित स्प्रिंगशेड प्रबंधन नितांत आवश्यक है। स्प्रिंगशेड प्रबंधन झरनों और भूमि के उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके पानी को संरक्षित करने और स्थायी जल प्रबंधन सुनिश्चित करने का एक तरीका है, जो भू-जल में योगदान देता है। वर्षा की स्थिति और पैटर्न पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण हिमालयी क्षेत्रों में झरने के पानी की आपूर्ति तेजी से अनिश्चित होती जा रही है, इससे वर्षा की तीव्रता में वृद्धि, अस्थायी प्रसार में कमी और सर्दियों की बारिश में गिरावट आई है। जलवायु परिवर्तन ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया है, इससे वर्षा पैटर्न अनियमित हो गया है और नदियों और जलभरों समेत स्प्रिंगशेड के पुनर्भरण पर असर पड़ा है। भारत सरकार विशेष रूप से जल जीवन मिशन और हर घर जल के माध्यम से सहभागी स्प्रिंगशेड प्रबंधन के माध्यम से पहाड़ों में पीने योग्य पानी के प्रावधान पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इससे पहले संस्थान के निदेशक डा. संदीप शर्मा ने मुख्यातिथि कंचन देवी का स्वागत किया और गतिविधियों से अवगत करवाया।