पीएम मोदी और धीरेंद्र शास्त्री की मुलाकात का VIDEO, कई VVIP लोग भी आए
देखें वीडियो.
नई दिल्ली: बीजेपी सांसद अनिल बलूनी के दिल्ली स्थित आवास पर उत्तराखंड का इगास पर्व सोमवार रात को मनाया गया. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई वीवीआईपी लोग शामिल हुए. बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे. पीएम मोदी और धीरेंद्र शास्त्री के बीच मुलाकात भी हुई. इस दौरान दोनों नेताओं ने हाथ जोड़कर मुस्कराते हुए एक-दूसरे का अभिवादन किया.
अनिल बलूनी के आवास पर मनाए गए इस पर्व में बाबा रामदेव, जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर अवधेशानंद जी महाराज, बागेश्वर बाबा पंडित धीरेंद्र शास्त्री समेत अन्य संत भी पहुंचे थे. इसके अलावा देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मौजूद रहे.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी इगास पर्व के लिए उत्तराखंड के लोगों को बधाई दी. उन्होंने कहा, "दिल्ली में आज मुझे भी उत्तराखंड से लोकसभा सांसद अनिल बलूनी जी के यहां इस त्योहार में शामिल होने का सौभाग्य मिला. मेरी कामना है कि यह पर्व हर किसी के जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली लाए."
उत्तराखंड के इस पर्व में शामिल होने के लिए गढ़वाल से बीजेपी सांसद अनिल बलूनी ने प्रधानमंत्री मोदी समेत सभी दिग्गजों का आभार जताया. उन्होंने पीएम का आभार जताते हुए कहा कि हम उत्तराखंडवासियों के लिए आज का दिन बहुत विशेष है. मेरे दिल्ली स्थित आवास पर आयोजित इगास के कार्यक्रम को आपकी उपस्थिति ने विराट भव्यता ही नहीं दी, बल्कि लगभग लुप्त हो चुके हमारे इस लोकपर्व के आयोजन को नई पहचान भी दी.
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में दीपावली के ठीक 11 दिन बाद एक पर्व मनाया जाता है, जिसे इगास बग्वाल कहा जाता है. इगास बग्वाल न सिर्फ उत्तराखंड का पारंपरिक पर्व है, बल्कि उत्तराखंड की लोक संस्कृति का प्रतीक भी है. उत्तराखंड में इगास बग्वाल को मनाने की पीछे एक कहानी काफी प्रचलित है. ऐसा कहा जाता है कि गढ़वाल में भगवान श्रीराम के वनवास के बाद अयोध्या लौटने का समाचार देरी से पहुंचा था और पहाड़ में लोगों ने तभी दीपावली मनाई थी. ये त्योहार देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर माना जाता है. इसकी दूसरी पहचान बूढ़ी दीपावली के नाम से भी है. इगास पर्व में मुख्य आकर्षण का केंद्र मशाल होती है. इसमें चीड़ की लकड़ी से बनी मशाल जलाई जाती है. जिसे भैलो कहा जाता है. इस दौरान लोग गीतों और नृत्य का आनंद लेते हैं.