नई दिल्ली: राष्ट्रपति चुनाव की तरह उपराष्ट्रपति चुनाव में भी भाजपा विपक्षी खेमे को एक और झटका देने की कोशिश में है। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा के पास अपना ही पर्याप्त बहुमत है। एनडीए के साथ उसकी ताकत और बढ़ जाती है, लेकिन पार्टी विपक्षी खेमे को और कमजोर कर संसद में अपनी मजबूत पकड़ दिखाना चाहती है।
उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा ने पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उम्मीदवार बनाया है, जबकि विपक्ष से कांग्रेस की नेता मार्ग्रेट अल्वा चुनाव मैदान में हैं। अल्वा को वैसे तो विपक्ष के अधिकांश दलों का समर्थन है, लेकिन उनके नामांकन के समय विपक्ष के कुछ दलों की दूरी को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने अपना रुख अभी तक साफ नहीं किया है। उनकी पार्टी का कोई सदस्य अल्वा के नामांकन में भी मौजूद नहीं था। तृणमूल कांग्रेस गुरुवार को इस बारे में फैसला करेगी। हालांकि, उसके द्वारा धनखड़ का समर्थन किए जाने की संभावना कम ही है, लेकिन कुछ सांसद अपनी मर्जी से भी वोट कर सकते हैं।
इसके अलावा, अल्वा के कांग्रेस नेतृत्व को लेकर उनके पूर्व के बयानों को लेकर भी हलचल है। ऐसी स्थिति का लाभ उठाकर भाजपा की कोशिश अपने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को भारी अंतर से जिताने की है। इसमें भी वह राज्यसभा में बड़ी सेंध लगाना चाहती है, जहां उसका अभी तक अपना बहुमत नहीं है।
हिंदुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक सूत्रों के अनुसार, भाजपा के चुनाव रणनीतिकार लोकसभा और राज्यसभा के विपक्षी सांसदों के संपर्क में हैं। इस चुनाव में व्हिप लागू नहीं होता है, इसलिए पार्टी लाइन के खिलाफ मतदान करने से भी सदस्यता पर कोई असर नहीं पड़ता है। वैसे भी विपक्षी खेमे की जो हालत है, उसमें विपक्ष के लिए अपने किसी सांसद पर कार्रवाई करना काफी मुश्किल है।
गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति के लिए संसद के दोनों सदनों के सांसद ही मतदान करते हैं। इसलिए सारी गतिविधियों का केंद्र संसद भवन बना हुआ है। मानसून सत्र के चलते अधिकांश सांसद संसद में हैं और उनसे मेल मुलाकातें भी जारी हैं। सत्र के शुरुआती दिनों में हंगामा होने के कारण भाजपा के चुनाव प्रबंधकों को काफी समय भी मिल रहा है। दूसरी तरफ विपक्ष की कोशिश है कि वह दोनों सदनों में अपनी मौजूदा ताकत को प्रभावी ढंग से बनाए रखे और सरकार के लिए वर्तमान लोकसभा में अपनी कड़ी चुनौती बरकरार रख सके।