नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी आत्मस्थानानंद जी की जन्म शताब्दी के अवसर पर कहा कि हमारे देश में संन्यास की महान परंपरा रही है. संन्यास के कई रूप है. संन्यास का अर्थ स्वयं से ऊपर उठकर समष्टि के लिए जीना है, समष्टि के लिए कार्य करना है.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि महान संत परंपरा को स्वामी विवेकानंद ने आधुनिक रूप में ढाला था. स्वामी आत्मस्थानानन्द जी ने भी संन्यास के इस स्वरूप को जिया और चरितार्थ किया. पीएम मोदी ने कहा कि हमारे संतों ने हमें दिखाया है कि जब हमारे विचारों में व्यापकता होती है, तो अपने प्रयासों में हम कभी अकेले नहीं पड़ते.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस ऐसे संत थे, जिन्होंने मां काली का स्पष्ट साक्षात्कार किया था, जिन्होंने मां काली के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था. रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि ये सम्पूर्ण जगत, ये चर-अचर, सब कुछ मां की चेतना से व्याप्त है. यही चेतना बंगाल की काली पूजा में दिखती है. पीएम मोदी ने कहा कि मां काली का असीमित-असीम आशीर्वाद हमेशा भारत के साथ है.
अपने वर्चुअल संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि आप देश के किसी भी हिस्से में जाइए, ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र मिलेगा, जहां स्वामी विवेकानंद न गए हों, या उनका प्रभाव न हो. स्वामी विवेकानंद की यात्राओं ने गुलामी के उस दौर में देश को उसकी पुरातन राष्ट्रीय चेतना का अहसास करवाया, उसमें नया आत्मविश्वास फूंका. संन्यासी के लिए जीव सेवा में प्रभु सेवा देखना, जीव में शिव को देखना ही सर्वोपरि है.
पीएम मोदी ने कहा कि आप भारत की धरती पर ऐसे कितने ही संतों की जीवन यात्रा देखेंगे, जिन्होंने शून्य संसाधनों के साथ शिखर जैसे संकल्पों को पूरा किया. भारत इसी आध्यात्मिक ऊर्जा को लेकर आज विश्व कल्याण की भावना से आगे बढ़ रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सैकड़ों साल पहले आदि शंकराचार्य हों या आधुनिक काल में स्वामी विवेकानंद, हमारी संत परंपरा हमेशा 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' का उद्घोष करती रही है. रामकृष्ण मिशन की स्थापना भी इसी विचार से जुड़ी हुई है.