Kalont village में हजारों श्रद्धालुओं ने डाली नाटी

Update: 2024-08-18 12:22 GMT
Nirmand. निरमंड। श्रीखंड महादेव कैलाश पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में बसी चायल वैली के कलोंट गांव में भद्रपद माह सक्रांति पर 10 वर्षों बाद मनाया जाने वाला ऐतिहासिक एवं पारंपरिक पड़ैई मेला पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया। इस मेले में कुल्लवी वेशभूषा में यहां नाटी डालकर यहां की संस्कृति की विशेष झलक देखने को मिली जिसके हजारों लोग साक्षी बने। मान्यता है कि चायल की अराध्य देवी चैलासनी नौ दिन पहले नरोड़ में बैठती है और दसवें दिन यानी भद्रपद माह की संक्रांत में अपने मंदिर जाओं से निकलकर जिस गांव में मेला लगता है वहां भोज नृत्य के बाद अपना स्थान ग्रहण करती है। इस मेले की विशेषता यह रहती है कि ये मेला एक गांव में 10 वर्षों के बाद आता है। इस मेले का लोगों काफी बेसब्री से इंतजार रहता है। इस क्षेत्र का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। इस मेले अपने रिश्तेदारों और यहां की ज़ाइयों को विशेष निमत्रण दिया जाता है। कहा जाता है कि पहले यह मेला दवाह गांव में भुंडा उत्सव के तौर पर
मनाया जाता था।


उसके बाद इसको 10 गांव में बांटा गया। इसमें जाओं, कलोटी, ढमार, दवाह, भगीर, कलोंट, जरोट, ठारला, तींदर, जुआगी शामिल हैं। जब पक्षीराज गरुड़ अमृत कलश को लेकर वायु मार्ग से हिमालय की ओर श्रीखंड की कंदराओं की ओर उडारी मारते हुए पहुंचा और जब इस क्षेत्र में कलश से अमृत की बूंद गिरी और यहां के सभी देवी देवताओं ने अमृत का रसपान किया था। वहीं क्षेत्र के कवि एवं साहित्यकार भगवान प्रकाश शर्मा और माता के पुजारी बृजलाल शर्मा ने कहा है कि विष्णु पुराण के अनुसार इस मेले में माता चैलासनी का काली रूप धारण कर भोज नृत्य किया जाता है। कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन हुआ था तब अमृत का कलश निकला था। ठीक उसी तरह एक मिट्टी से निर्मित कलश में घी डालकर जिसको यहां की बोली में कुंदड़ी कहा जाता है। इसमें कलश धारी को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। घी पीने वालों को असुर का रूप माना जाता है। उन्होंने कहा कि यह मेला हजारों साल पुराना है।
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