बाघों का गढ़ रहे पलामू अभयारण्य में नहीं है एक भी बाघ...तेंदुए करते हैं राज

झारखंड (Jharkhand) में आजादी से पहले कभी बाघों का गढ़ रहे पलामू बाघ अभयारण्य (Palamu Sanctuary) में अब तेंदुओं का राज है

Update: 2021-06-06 13:24 GMT

झारखंड (Jharkhand) में आजादी से पहले कभी बाघों का गढ़ रहे पलामू बाघ अभयारण्य (Palamu Sanctuary) में अब तेंदुओं का राज है. यह सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है लेकिन यह सच है कि कभी बाघों (Tigers) की अपनी आबादी के लिए गौरवान्वित रहा यह अभयारण्य अब लगभग 150 तेंदुओं (Leopard) की पनाहगाह है.

वन अधिकारियों ने बताया कि इन दिनों पलामू बाघ अभयारण्य में आने वाले पर्यटक तेंदुओं को देखते हैं और उनकी तस्वीरें खींचते हैं. उन्होंने कहा कि फरवरी 2020 में बेतला राष्ट्रीय उद्यान में एक बाघिन के मृत पाए जाने के बाद से यहां कोई बाघ नहीं देखा गया.
पर्यटकों के लिए रहा आकर्षण का केंद्र
मुख्य वन संरक्षक और पीटीआर परियोजना निदेशक वाई. के. दास ने बताया कि यहां करीब 150 तेंदुओं की आबादी है. इसमें पलामू बाघ अभयारण्य (Palamu Tiger Reserve) आ रहे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए हैं. उन्होंने कहा कि पर्यटकों को खुश होकर अक्सर तेंदुए को छलांग लगाते हुए और उनके साथ सेल्फी लेते हुए देखा जाता है. फिलहाल हम बाघों की वापसी के लिए भी हरसंभव कोशिशें कर रहे हैं.
ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन' में नहीं पाया गया कोई बाघ
दास ने बताया कि बाघों के 1130 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके को छोड़ने की वजह पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ और ओडिशा में वाम चरमपंथी गतिविधियों, सुरक्षा कर्मियों की गतिविधियों, इंसानों के बढ़ते अतिक्रमण और शिकार करने के कारण ठिकाने कम हो रहे है. उन्होंने कहा कि बाघों को वापस लाने के लिए शिकार करने के ठिकानों को खत्म करने समेत अन्य कदम उठाए जा रहे हैं. दास ने बताया कि यहां आखिरी 'ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन' में कोई बाघ नहीं पाया गया था, लेकिन फरवरी 2020 में पीटीआर में एक शेरनी मृत पायी गई जो यह साबित करता है कि बाघ वहां थे.
जंगल से बाहर बसाए जाएंगे बाहर
दास ने कहा कि हम बाघों की वापसी के लिए पीटीआर की पारिस्थितिकी को संरक्षित करने और उसके शिकार करने के ठिकानों को सुधारने के लिए जगह परिवर्तन की परियोजना पर काम कर रहे हैं. हम लातू और कुजरुम गांवों के लोगों को पीटीआर के बाहर बसाएंगे. उन्होंने बताया कि इस परियोजना में 300 वर्ग किलोमीटर इलाके की जरूरत है. हम इन दो गांवों के 22 परिवार को कहीं और बसाएंगे और वे इस पर राजी हो गए हैं.
साल 2014 में पाए गए थे 3 बाघ
पलामू को 1973-1974 में संरक्षित वन अभयारण्य घोषित किया गया था. जब प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया था. इसका मकसद देश की बाघ आबादी का संरक्षण करने में मदद के लिए बाघों के रहने के अनुकूल जगहों की कमी से निपटना था. बाघों को हुए नुकसान को सुधारना था. इस अभयारण्य में 1995 में सबसे ज्यादा 71 बाघ थे. लेकिन तब से उनकी आबादी कम होती गई और 2014 में महज तीन बाघ थे. फिलहाल यहां एक भी बाघ नहीं है.


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