कृष्ण जैसा योगी नहीं जग में, रास का मतलब काम पर विजय प्राप्त करना: देवकीनंदन ठाकुर
भीलवाड़ा। कई लोगों को रास का मतलब ही पता नहीं और महिला-पुरूष के साथ नाचने को रास कह देते है जबकि रास तो भक्तों के साथ केवल भगवान करते है। हम कामी लोग रास नहीं कर सकते। रास का मतलब ही काम पर विजय प्राप्त कर लेना है। पूर्ण ब्रह्म का स्वरूप कृष्ण जैसा योगी इस जग में नहीं जिसे योगेश्वर नाम मिला। कामदेव पर विजय पाने वाले भगवान कृष्ण के रास को सांसारिक लोग नहीं समझ सकते। ये विचार परम पूज्य शांतिदूत पं. देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने शुक्रवार को शहर के आरसी व्यास कॉलोनी स्थित मोदी ग्राउण्ड में विश्व शांति सेवा समिति के तत्वावधान में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान गंगा महोत्सव के छठे दिन रास पंचाध्यायी प्रसंग का वाचन करने के दौरान व्यक्त किए। इस दौरान उद्धव चरित्र, रूक्मिणी विवाह प्रसंग का भी वाचन हुआ। महारास एवं रूक्मणी विवाह प्रसंग आने पर पांडाल में निरन्तर जयकारे गूंजते रहे और हर तरफ भक्ति से ओतप्रोत माहौल दिखा। कथा श्रवण के लिए मोदी ग्राउण्ड पर शहरवासियों के साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से भी भक्तों का सैलाब उमड़ा था। कथा के दौरान विभिन्न भजनों पर भी श्रद्धालु भक्ति रस में सराबोर होकर थिरकते रहे। कथा में जैसे ही रूक्मणी विवाह का प्रसंग आया उल्लास का वातावरण बन गया। आज मेरे श्याम की शादी है की गूंज के साथ ढोल-नगाड़ो के साथ कृष्ण की बारात रूक्मणी से विवाह के लिए आई तो पांडाल में माहौल विवाहस्थल जैसा बन गया। हर तरफ खुशियां छा गई और हर भक्त भगवान कृष्ण की शादी के मंचन का साक्षी बन उल्लासित नजर आया और नाच-गाने के माध्यम से अपनी खुशियां जताने को आतुर दिखा। मंत्रोच्चार के साथ कृष्ण-रूक्मणी विवाह हुआ। विवाह से पूर्व भगवान कृष्ण की रासलीला प्रसंग के वाचन के दौरान भी ठाकुरजी महाराज ने जैसे ही ‘‘हो कैसी बंशी बजाई मेरे श्याम ने मेरी सुध बिसराई ’’ भजन गाया पांडाल में हजारों श्रद्धालु स्त्री-पुरूष अपने-अपने स्थानों पर नृत्य करने लगे। उन्होंने कहा कि वृन्दावन वन में ही किशोरी के साथ कृष्ण के दर्शन होते है इसीलिए सभी बांकेबिहारी से प्रेम करते है। उन्होंने कृष्ण के कामदेव पर विजय पाने का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि रास के माध्यम से भगवान भक्तों को राह दिखाते है।
भक्त वो ही होता जिसका मन नहीं भटके और भगवान का चिंतन करते रहे। ठाकुरजी ने कहा कि हमारे पर कितना भी विपदा आए लेकिन परमात्मा के प्रति हमारी भक्ति व आस्था अटूट रहनी चाहिए। भक्तों की इस आस्था की रक्षा के लिए ही भगवान ने कनिष्क अंगुली पर सात दिन ओर रात गिरिराज पर्वत को धारण रखा ओर इन्द्र के कोप से ब्रजवासियों को बचाया। हमारी भक्ति अटूट हो तो परमात्मा कभी अपने भक्त का विश्वास तोड़ते नहीं है। अतिथियों का स्वागत आयोजन समिति के संयोजक श्यामसुन्दर नौलखा, अध्यक्ष आशीष पोरवाल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष एडवोकेट हेमेन्द्र शर्मा, महासचिव एडवोकेट राजेन्द्र कचोलिया, समिति के कोषाध्यक्ष राकेश दरक, सचिव धर्मराज खण्डेलवाल,सह सचिव बालमुकुंद सोनी, संयुक्त सचिव दिलीप काष्ट आदि पदाधिकारियों ने किया। कथा के दौरान राधे-राधे की गूंज के साथ भजनों पर भक्तगण थिरकते रहे। सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के तहत समापन दिवस शनिवार को दोपहर एक बजे से द्वारिका लीला, सुदामा चरित्र, परीक्षित मोक्ष प्रसंगों का वाचन किया जाएगा एवं अंत में व्यास पूजन पूर्णाहुति होंगी। आयोजन समिति के कोषाध्यक्ष राकेश दरक ने बताया कि छठे हनुमान टेकरी के महंत श्रीबनवारीशरण काठियाबाबा, श्री श्यामसुन्दरजी लालबाबा महाराज, समिति के संरक्षक एवं आरसीएम ग्रुप के प्रकाश छाबड़ा, जिला एवं सेशन न्यायाधीश अजय शर्मा, अपर जिला न्यायाधीश आशीष बिरजानिया, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सुषमा शर्मा, बाबूलालजी जाजू, राघेश्याम कचोलिया, सुरेश कचोलिया, गोविन्द कचोलिया, दिनेश कचोलिया, कैलाशचन्द्र काबरा, अर्पित चौधरी, कांति भाई, माहेश्वरी महिला मण्डल की प्रदेश अध्यक्ष सीमा कोगटा, जिलाध्यक्ष प्रीति लोहिया, सचिव भारती बाहेती, नगर अध्यक्ष डॉ. सुमन सोनी, मंत्री सोनल माहेश्वरी, समस्त ब्राह्मण समाज से नंदलाल सुवाल, योगेश व्यास, महावीर आचार्य आदि ने व्यास पीठ की आरती करके देवकीनंदन ठाकुर से आशीर्वाद प्राप्त किया। ठाकुर ने कहा कि रामायण हर कोई नहीं पढ़ सकता उसे पढ़ने के लिए दिल-दिमाग चाहिए। परिवार में रिश्ते कैसे होते है यह समझना हो तो रामायण को अपने जीवन में उतार ले। भोगी, कामी, ईर्ष्यालु प्रवृति वाले रामायण को नहीं समझ सकते। रामायण के पात्रों के गुण जीवन में उतारने का प्रयास किया तो थोड़ा बहुत इंसान बन पाएंगे। अपनी अर्न्तात्मा से चालाकी नहीं करे ओर अपने कल्याण की चिंता करे। हमेशा चिंतन करे कि मैं अभिमानी नहीं बन जाउ ओर गुरू ओर गोविन्द हमारे यहां आए तो उनका पूजन करे। श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिन महारास सहित कृष्ण लीला से जुड़े विभिन्न प्रसंगों के वाचन के दौरान बीच-बीच में भजनों की धारा प्रवाहित होती रही। इन भजनों पर सैकड़ो श्रद्धालु थिरकते रहे। जैसे ही व्यास पीठ से महाराजश्री भजन शुरू करते कई श्रद्धालु अपनी जगह खड़े होकर नृत्य करने लगते। उन्होंने श्याम ने ऐसी बंशी बजाई के साथ महारास से जुड़े भजन गाए तो यूं लगा जैसा कथा पांडाल ही कृष्ण भक्ति में लीन वृन्दावन बन गया हो। उन्होंने ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन, मनड़ो लागे ना सखी घनश्याम बिना आदि भजनों से भक्तगणों को भगवान की भक्ति में रंगते हुए झूमने के लिए मजबूर कर दिया। सैकड़ो महिला श्रद्धालु भक्ति रस से सराबोर होते भजनों के दौरान झूमती रही।