फिर चर्चाओं में आया सनसनीखेज 'बिकरू' कांड, कानपुर रेंज के पूर्व DIG के खिलाफ विभागीय जांच शुरु

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में बीती 2 जुलाई की रात हुआ खूनी “बिकरू” कांड एक बार फिर चर्चा में है.

Update: 2021-06-21 17:20 GMT

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में बीती 2 जुलाई की रात हुआ खूनी "बिकरू" कांड एक बार फिर चर्चा में है. इस बार उस कांड की चर्चा, कानपुर में तब डीआईजी के पद पर तैनात रहे रेंज के पुलिस उप-महानिरीक्षक अनंत देव तिवारी को लेकर है. बिकरू कांड की जांच के लिए गठित उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम (SIT) की जांच में डीआईजी अनंत देव तिवारी दोषी करार दिये गये थे. उसके बाद राज्य की हुकूमत ने आरोपी डीआईजी के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश जारी किये थे. इस जांच के लिए दो सदस्यीय टीम का भी गठन किया गया था. इस टीम में लखनऊ के संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) और कानपुर के एडिश्नल पुलिस कमिश्नर (अपराध एवं कानून व्यवस्था) को नियुक्त किया गया था. इसी टीम ने शुक्रवार को बिकरू कांड में बयान दर्ज किये थे.

बयान दर्ज किये जाने से पहले विभागीय जांच कमेटी ने एसआईटी की वो जांच रिपोर्ट भी पढ़ी जिसमें, डीआईजी की भूमिका को संदिग्ध माना गया था. राज्य पुलिस महानिदेशालय सूत्रों के मुताबिक दो सदस्यीय विभागीय जांच कमेटी बेशक अपने स्तर पर नये सिरे से जांच करेगी. मगर उसकी जांच से पूर्व एसआईटी की जांच में भी चूंकि कानपुर रेंज के पूर्व डीआईजी अनंत देव तिवारी को दोषी करार दिया गया था. ऐसे में एसआईटी की उस रिपोर्ट को भी महकमे की जांच कमेटी सिरे से खारिज नहीं कर सकती है. विभागीय जांच कमेटी द्वारा बयान दर्ज किये जाने की प्रक्रिया शुरु होते ही, राज्य पुलिस महकमे में चर्चाओं का बाजार गरम हो गया. चर्चा इस बात को लेकर थी कि, एसआईटी की जांच रिपोर्ट को नकार पाना विभागीय जांच कमेटी के लिए आसान नहीं होगा. विभागीय जांच कमेटी के सामने भी अगर डीआईजी अनंत कुमार तिवारी दोषी सिद्ध हो गये, तो मामला पूरी तरह पलट जायेगा.
उस काली रात क्या हुआ था बिकरू में
उल्लेखनीय है कि बीते साल यानी सन् 2020 में 2 जुलाई को आधी रात बिकरू कांड में एक पुलिस क्षेत्राधिकारी सहित 8 पुलिस अफसरों-कर्मचारियों को चारों ओर से घेरकर मार डाला गया था. उस कांड का मुख्य षड्यंत्रकारी विकास दुबे बाद में यूपी पुलिस स्पेशल पुलिस टास्क फोर्स के साथ मुठभेड़ में मारा गया. जबकि कई अन्य हमलावरों को पुलिस ने धीरे-धीरे करके एक के बाद एक या तो मुठभेड़ों में निपटा दिया. या फिर जो गिरफ्तार हुए उन्हें जेल भेज दिया. इस वक्त तकरीबन एक दो को छोड़कर बिकरू कांड के सभी आरोपी जेलों में बंद हैं. उस घटना में सबसे बड़ा तूफान तब उठा था जब, बात फैली कि बिकरू कांड में कुछ पुलिस वालों की भूमिका ही संदिग्ध थी. जांच में वे आरोप सही भी पाये गये. सबसे बड़ा आरोप तो बिकरू कांड में शहीद होने वाले सीओ के उस पत्र से हुआ था, जिसे उन्होने डीआईजी को भेजा था. जिसमें सीओ ने आरोप लगाया था कि उनकी जान को खतरा है. साथ ही कहा था कि जिस थाना इलाके में बिकरू गांव आता है. उस थाने में कई पुलिस वालों का चरित्र भी संदिग्ध है.
पुलिस क्षेत्राधिकारी का वो खत
सीओ के उस पत्र पर कहा गया था कि, ऐसा कोई पत्र डीआईजी कार्यालय को प्राप्त नहीं हुआ था. बहरहाल जो भी हो क्षेत्राधिकारी के पत्र ने राज्य की हुकूमत और पुलिस महकमे में तूफान तो ला ही दिया था. उसी पत्र में इस बात का भी जिक्र किया गया था कि, किस तरह अपराधी किस्म के जयकांत बाजपेयी का थाने-चौकी की पुलिस के बीच उठना बैठना था. पत्र के मुताबिक जयकांत वाजपेयी ही बिकरू कांड के मुख्य आरोपी विकास दुबे का फाइनेंसर और खजांची था. सीओ के पत्र के बाद ही थाना पुलिस और कानपुर के तत्कालीन डीआईजी की तरफ शक की सुई घूमी थी. फिलहाल शुरु की गयी विभागीय जांच और एसआईटी की पूर्व में आ चुकी रिपोर्ट्स अगर एक सी ही निकल कर सामने आती हैं. तो इससे बाकी संदिग्ध पुलिस वालों का जो नुकसान होगा सो होगा. कानपुर रेंज के पूर्व डीआईजी अनंत देव तिवारी की पुलिसिंग पर भी सवालिया निशान लग सकता है. मगर यह सब निर्भर विभागीय जांच कमेटी की रिपोर्ट पर ही करेगा. अगर विभागीय जांच कमेटी की रिपोर्ट में डीआईजी साफ बच भी जाते हैं, तो अगला सवाल यह खड़ा होगा कि, क्या पुलिस महकमे की अपनी ही स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) ने ही रिपोर्ट गलत दाखिल की?
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