एडवाइजरी ग्रुप के सदस्य ने कहा- वैक्सीन की दो डोज 1 या 2 महीने के गैप पर लगी तो चिंता की बात नहीं
सरकार ने डोज के बीच गैप बढ़ाने के फायदे को लेकर एक डिटेल्ड स्टडी भी जारी किया है.
कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच गैप बढ़ाने पर कोविड वर्किंग ग्रुप के चेयरमैन एन के अरोड़ा ने कहा कि यह फैसला वैज्ञानिक आधार पर लिया गया, ना कि वैक्सीन की कमी के कारण. जिन लोगों ने पहले 1 या डेढ़ महीने के गैप पर डोज लिया था, उनको लेकर डॉ अरोड़ा ने कहा कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, "जब हम दूसरी डोज देते हैं तो एंटीबॉडी काफी ज्यादा पैदा होती है, लेकिन ग्राउंड पर कितना प्रभाव होता है ये हमें मालूम नहीं है. अभी तक का जो डेटा है उसके अनुसार, अगर गैप थोड़ा बढ़ा दिया जाए तो 40-50 फीसदी एंटीबॉडी बढ़ जाती है. जिनको 1 या दो महीने के गैप पर लग चुका है, उनको चिंतित होने की जरूरत नहीं है, उनमें अच्छी एंटीबॉडी बनेगी."
भारत सरकार ने गुरुवार को एक सरकारी पैनल नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन (NTAGI) की सलाह पर कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज लगवाने के बीच के समय को 6-8 सप्ताह से बढ़ाकर 12-16 सप्ताह करने का फैसला लिया. NTAGI के सात सदस्यों में एक डॉ एन के अरोड़ा ने कहा कि सरकार ने डोज के बीच गैप बढ़ाने के फायदे को लेकर एक डिटेल्ड स्टडी भी जारी किया है.
डॉ अरोड़ा ने इन अफवाहों को खारिज किया कि ये फैसला देश में वैक्सीन की कमी के कारण लिया गया है. एनडीटीवी से बातचीत में उन्होंने कहा, "अगर मैं एक महीने का गैप बढ़ाता तो इससे क्या फायदा होगा? इससे सिर्फ 4 से 6 करोड़ डोज का अंतर आएगा. इसलिए इस फैसले से (डोज के बीच गैप बढ़ाने से) वैक्सीन की कमी पर शायद ही कोई असर होगा. डोज के बीच गैप बढ़ाना लाभदायक है."
उन्होंने कहा कि नई स्टडी सामने आई है कि ऑक्सोफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दूसरी डोज अगर 3 महीने के गैप में दी जाती है, तो वायरस के संक्रमण से 65-88 फीसदी तक सुरक्षा मिलता है. उन्होंने कहा, "वैक्सीन पर शुरुआती अध्ययन में 44 हफ्ते के गैप की भी बात की गई है. कनाडा ने दो डोज के बीच 4 महीने का गैप रखा है." ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का भारत में उत्पादन पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) कर रहा है, जिसे देश में कोविशील्ड नाम दिया गया है.
दोबारा संक्रमित होने की संभावना 0.02-0.04 फीसदी
एक महीने के गैप पर या 12-16 हफ्ते के गैप पर दोनों डोज लेने से होने वाले फायदे की तुलना पर डॉ अरोड़ा ने कहा कि अभी तक इस पर डेटा नहीं है लेकिन सरकार ने स्टडी को लेकर प्लान किया है. उन्होंने कहा, "डोज का गैप बढ़ाने से संक्रमण से कितना बचाव मिलेगा. गंभीर खतरे से बचाव या मौत से कितना बचाव मिलेगा, इस पर अगले 4 हफ्तों में स्टडी की रिपोर्ट आनी शुरू हो जाएगी. और यह रेगुलर बुलेटिन के जरिए बताया जाएगा."
उन्होंने कहा कि अब तक के डेटा से पता चलता है कि दोनों डोज लेने के बाद दोबारा संक्रमित होने की संभावना 0.02-0.04 फीसदी है और गंभीर संक्रमण या मौत की संभावना "ना के बराबर" रहती है. शरीर में एंटी बॉडी को लेकर उन्होंने कहा, "अभी तक जो डेटा हैं, उसके हिसाब से वैक्सीन लेने के बाद 3 से 8 महीने तक एंटी बॉडी बनी रहती है." उन्होंने वैक्सीन लेने के बाद मौत की रिपोर्ट को लेकर कहा कि कोवैक्सीन को लेकर मालूम नहीं है, लेकिन कोविशील्ड के बारे में अंतरराष्ट्रीय या देश के हिसाब से बताया जा सकता है कि वैक्सीन की पहली डोज के बाद 4-20 तक समस्या हो सकती है.
पिछले दो महीने में दूसरी बार बढ़ाया गया गैप
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविशील्ड डोज के गैप बढ़ान की घोषणा करते हुए कहा था कि यह ''विज्ञान आधारित फैसला है'' और इस विश्वास के साथ लिया गया है कि इससे कोई अतिरिक्त खतरा नहीं होगा. हालांकि पैनल ने कोवैक्सीन के दो डोज में बदलाव का कोई सुझाव नहीं दिया है. पिछले कुछ महीनों में दूसरी बार ऐसा हुआ है जब कोविशील्ड की दो डोज के बीच का गैप बढ़ाया गया है. इससे पहले केंद्र सरकार ने दो डोज के बीच गैप को 28 दिनों से बढ़ाकर 6 से 8 सप्ताह तक करने का निर्देश दिया था.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि एनटीएजीआई स्थाई समिति है जिसका गठन कोविड-19 से बहुत पहले हुआ था और वह बच्चों के टीकाकरण का काम करती है. नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल ने कहा, ''यह (एनटीएजीआई) वैज्ञानिक आंकड़ों का विश्लेषण करता है और हमें संस्थान के फैसले का सम्मान करना चाहिए. वे स्वतंत्रतापूर्वक फैसला लेते हैं.''
इसके सदस्यों में JIPMER के निदेशक और डीन डॉ राकेश अग्रवाल, वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर डॉ गगनदीप कांग, इसी कॉलेज के पूर्व प्रोफेसर डॉ जे पी मुल्लीयाल, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंट बायोटेक्नोलॉजी (ICGIB) के ग्रुप लीडर डॉ नवीन खन्ना, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्युनोलॉजी के निदेशक डॉ अमूल्य पांडा और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) डॉ वी.जी. सोमानी शामिल हैं.