ममता बनर्जी के जाति जनगणना के खिलाफ होने के कारणों में फर्जी प्रमाणपत्रों का भूत भी शामिल

Update: 2023-09-10 04:33 GMT
कोलकाता: मुंबई में विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' के दो दिवसीय बैठक के समापन दिन जाति-आधारित जनगणना को लेकर दलों के बीच मतभेद सामने आ गया। इस संबंध में बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार की ओर से पेश प्रस्‍ताव का पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता बनर्जी ने मुखर विरोध किया। ऐसा माना जाता है कि जाति जनगणना के समर्थन पर यह मतभेद उन कारणों में से एक था, जिसके कारण ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी मुंबई सम्मेलन के अंत में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे।
आखिर जाति जनगणना के समर्थन को लेकर मुख्यमंत्री इतनी संवेदनशील क्यों हैं? तृणमूल कांग्रेस के नेता इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं और दावा कर रहे हैं कि जनगणना का विरोध करने के पीछे पार्टी के तर्क को स्पष्ट करना केवल मुख्यमंत्री या राष्ट्रीय महासचिव का काम है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों और टिप्पणीकारों को इस रुख के पीछे कुछ ठोस कारण दिखाई देते हैं।
उनके अनुसार, पश्चिम बंगाल में फर्जी जाति प्रमाण पत्र जारी करने की बढ़ती शिकायतें, जिसके कारण हाल ही में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली के लिए संपन्न चुनावों के दौरान राज्य में एक बड़ा हंगामा हुआ, एक प्रमुख कारण है। दूसरा कारण जाति-आधारित राजनीति में सीएम को अनुभवहीनता है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में यह कभी भी प्रमुख विशेषता नहीं रही, जैसा कि काऊ बेल्ट यानी उत्तर भारतीय राज्‍यों में है। राजनीतिक विश्लेषक सुभाशीष मोइत्रा ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि ममता बनर्जी द्वारा जाति जनगणना का विरोध करने का एक कारण राज्य में गलत जाति प्रमाण पत्र जारी करने के बढ़ते आरोप हो सकते हैं। मोइत्रा ने बताया, “ये आरोप त्रि-स्तरीय पंचायत प्रणाली के लिए हाल ही में संपन्न चुनावों के दौरान प्रमुख रूप से सामने आए, जहां कई निचले स्तर के नौकरशाहों पर सत्तारूढ़ दल के निर्देशों के बाद नकली जाति प्रमाण पत्र जारी करने का आरोप लगाया गया था, ताकि सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार आरक्षित सीट से चुनाव लड़ सकें।”
हालांकि, राजनीतिक स्तंभकार अमल सरकार को लगता है कि जाति की राजनीति पर ममता बनर्जी की आपत्ति के पीछे फर्जी जाति प्रमाण पत्र का आरोप मुख्य कारण नहीं है। उन्होंने कहा, ''ऐसे आरोप हर राज्य में हैं। कुछ राज्यों में जहां राजनीतिक दल मुख्य रूप से जाति-आधारित राजनीति पर पनपते हैं, वहां इस संबंध में अनियमितताएं संभवतः पश्चिम बंगाल की तुलना में कहीं अधिक हैं। यह एक कारण हो सकता है, लेकिन निश्चित रूप से मुख्यमंत्री के जाति जनगणना के विरोध का मुख्य कारण नहीं है।''
उनके अनुसार, पश्चिम बंगाल में जाति-आधारित राजनीति कभी भी एक प्रमुख कारक नहीं रही है। जद (यू) के नीतीश कुमार, राजद के लालू प्रसाद यादव, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, बसपा की मायावती और कुछ हद तक तमिलनाडु में द्रमुक के विपरीत ममता बनर्जी के लिए यह पूरी तरह से अज्ञात है। सरकार ने कहा, “याद रखें, धर्म-आधारित राजनीति, चाहे उसका पोषण करना हो या उसका विरोध करना, कुछ हद तक एक स्ट्रेटजैकेट पैटर्न है। हालांकि, जाति-आधारित राजनीति में बहुत अधिक अंतर्धाराएं हैं। काऊ बेल्‍ट के प्रमुख नेताओं और कुछ हद तक तमिलनाडु के नेताओं के पास इन अंतर्धाराओं से निपटने का लंबा अनुभव है और वे मुख्य रूप से जाति-आधारित राजनीति पर टिके रहते हैं। यही हाल सिर्फ ममता बनर्जी का ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं का है। इसलिए मेरी राय में इस अज्ञात क्षेत्र में कदम रखने में ममता बनर्जी की झिझक जाति-आधारित जनगणना के उनके प्रतिरोध का कारण है।”
मोइत्रा और सरकार दोनों को लगता है कि जाति आधारित जनगणना का यह मुद्दा आने वाले दिनों में 'इंडिया' गठबंधन के घटकों के बीच कलह का एक प्रमुख मुद्दा बन सकता है। इसकी मांग करने वालों से तृणमूल कांग्रेस की दूरी बढ़ सकती है।
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