देश में यहां मिला ऐसा पहला मामला...फेफड़े को सख्त कर सकता है कोरोना वायरस,पढ़े पूरी खबर

कोरोना वायरस के बारे में हम यह जान चुके हैं

Update: 2020-10-24 18:17 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कोरोना वायरस के बारे में हम यह जान चुके हैं कि यह हमारे मुंह, नाक या अन्य रास्ते से हमारे श्वसन तंत्र में घुस कर हमारे फेफड़े तक पहुंच जाता है और उसे बुरी तरह प्रभावित करता है। न केवल फेफड़े, बल्कि दिल, किडनी, लिवर और अन्य अंगों को भी बर्बाद करना शुरू कर देता है। फेफड़ों पर इसके बुरे प्रभाव से इंसान का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। यह वायरस इंसानी फेफड़ों को किस कदर बर्बाद कर सकता है, इसका एक डरावना मामला कर्नाटक में मिला है, जहां 62 साल के एक बुजुर्ग मरीज की इससे मौत हो गई। इस मरीज के फेफड़े 'लैदर की गेंद' की तरह सख्त हो चुके थे। 

62 वर्षीय बुजुर्ग के शरीर में प्रवेश करने के बाद कोरोना वायरस से फेफड़ों का इतना बुरा हाल कर दिया था कि मरीज की मौत हो गई। टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, बुजुर्ग की मौत के 18 घंटे बाद भी उसकी नाक और गले में कोरोना वायरस सक्रिय मिला। इस मामले ने चिकित्सकों को भी हैरान किया। इसका मतलब था कि संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद भी शव के संपर्क में आने पर अन्य लोग भी कोरोना संक्रमित हो सकते थे। 

ऑक्सफोर्ड मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर दिनेश राव के मुताबिक, मरीज के फेफड़े कोरोना वायरस संक्रमण के कारण किसी लैदर की बॉल की तरह सख्त हो चुके थे। बुजुर्ग की मौत के बाद शव की जांच से कोविड-19 प्रोग्रेशन को समझने में भी मदद मिली है। फेफड़ों में हवा भरने वाला हिस्सा काफी खराब हो चुका था और कोशिकाओं में खून के थक्के बन चुके थे। 

खबरों के मुताबिक, डॉ. राव ने शव के नाक, मुंह, गला, फेफड़ों के सरफेस, रेस्पिरेटरी पैसेज के अलावा चेहरे और गले की त्वचा से पांच तरह के स्वैब नमूने लिए थे। आरटीपीसीआर जांच से पता चला कि गले और नाक वाला सैंपल कोरोना वायरस पॉजिटिव था। इसका मतलब यही निकाला गया कि कोरोना मरीज का शव भी दूसरे लोगों को संक्रमित कर सकता है। हालांकि शव की त्वचा से लिए गए सैंपल की रिपोर्ट निगेटिव आई। 

कोरोना से मौत होने के बाद बुजुर्ग के परिवार की सहमति से उसके शव की जांच की गई थी। डॉ राव के मुताबिक, शव की जांच के बाद तैयार हुई रिपोर्ट अमेरिका और ब्रिटेन में दर्ज हुए मामलों से काफी अलग है। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि भारत में पाए जाने वाले वायरस की नस्ल दूसरे देशों की तुलना में अलग हों। इस रिपोर्ट से आगे होने वाले शोध अध्ययनों में मदद मिल सकती है। 

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