रहट के पार्ट में तेल डालने लगा किसान, अचानक रहमट में बंधे बैल चल पड़े, मौके पर मौत

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Update: 2021-11-01 00:59 GMT

राजसमंद. राजसमंद जिले के पहाड़ी एवं आदिवासी कुंभलगढ़ क्षेत्र में रहट में फंसने से एक किसान की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई. जिसने भी यह सुना और देखा वह सन्न रह गया. यह खौफनाक हादसा केलवाड़ा थाना क्षेत्र के बडग़ांव पंचायत का है. जानकारी के मुताबिक बड़गांव गांव के परमारों की भागल निवासी घासीराम भील खेत में फसल की सिंचाई के लिए कुएं पर रहट चला रहा था. इस दौरान रहट भारी चल रहा थी तो किसान घासीराम रहट के पार्ट में तेल डालने लगा. तेल डालने के दौरान रेमहट में बंधे हुए दोनों बैल चल पड़े जिससे रहट घूमने लगा. ऐसे में घासीराम रहट घुमाने के लिए लगे लकड़ी के पार्ट में फंस गया.

चीख-पुकार सुनकर आसपास के खेतों में कार्य कर रहे अन्य ग्रामीण मौके पर पहुंचे. उन्होंने घासीराम को रहट से निकालने की कोशिश भी की लेकिन लकड़ी के दो पार्ट में फंस जाने के कारण किसान की मौके पर ही मौत हो गई. ग्रामीणों ने इसकी सूचना केलवाड़ा थाना पुलिस को दी. रहट को तोड़कर घासीराम के शव को बाहर निकाला और हॉस्पिटल पहुंचाया. जहां पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया.
केलवाड़ा थाना अधिकारी शैतान सिंह ने बताया कि बड़ गांव निवासी घासीराम भील पुत्र हेतु राम भील अपने खेत पर फसल की पिलाई के लिए पारंपरिक कृषि यंत्र रहट का इस्तेमाल करता था जिसमें फंसने से उसकी मौत हो गई.
कुंभलगढ़ क्षेत्र में आज भी पारंपरिक रहट का इस्तेमाल
आदिवासी बहुल और पहाड़ी क्षेत्र कुंभलगढ़ के ज्यादातर किसान आज भी इलेक्ट्रीक मोटर और इंजन नहीं, बल्कि रहट पर बैल जोतकर कुएं से पानी सींचकर खेतों की सिंचाई करते हैं. कुएं से पानी निकालने के लिए रहट में बेल बांधकर घुमाया जाता है. जैसे-जैसे बेल घूमते हैं, वैसे-वैसे कुएं से पानी बाहर आता है. इस पानी से खेत में सिंचाई की जाती है.
क्या होती है रहट?
रहट पारंपरिक सिंचाई का एक यंत्र है. रहट कुएं या तालाब से जल निकालने का एक ऐसा यंत्र है जिसमें एक रस्सी में पिरोयी हुई पानी भरने की डोलचियों की माला गोलाकार चलती रहती है. जब बैलों या किसी मनुष्य के द्वारा रस्सी खींची जाती है. रहट सिंचाई का एक ऐसा सिस्टम में जिसमें ना तो इंजन का इस्तेमाल होता है ना ही इसमें बिजली खर्च होती है.
रहट सिंचाई में एक धुरी से दो बैलों को इस तरह बांधा जाता था कि वो गोल चक्कर काटते रहें. दूसरी ओर किसी पारम्परिक कुंए के ऊपर सिस्टम लगाकर उस पर चेन या रस्सी के माध्यम से बाल्टियां बांधी जाती थी. अब इन बाल्टियों की चेन और बैलों की धुरी को इस तरह जोड़ा जाता था कि जब बैल गोल घूमें तो धुरी के माध्यम से पैदा यांत्रिक ऊर्जा से बाल्टियों की भी चेन घूमने लगे और कुंए से पानी निकलकर खेतों की ओर जाती नालियों में गिरने लगे.
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