ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल कंपेनियन ऑफ एनिमल्स नाम की संस्था की वाइस प्रेसीडेंट केली ओमारा ने कहा कि यह एक खास तरह का डाई है जिसके सीधे संपर्क में आने की वजह से कुत्तों का रंग तो बदल ही रहा है. साथ ही उनके ऊपर जहरीला प्रभाव भी पड़ रहा है. इससे कुत्तों की त्वचा में जलन, खुजली और शरीर में अंदरूनी ब्लीडिंग हो रही है. जिससे कई कुत्तों की मौत भी हो चुकी है.
रिया नोवोस्ती के अनुसार इस केमिकल प्लांट को साल 2015 में बंद कर दिया गया था. क्योंकि यह दिवालिया घोषित हो गई थी. लेकिन कंपनी प्रबंधन ने प्लांट के चारों तरफ घेराबंदी कर दी है ताकि कुत्ते वहां तक न पहुंच सके. जेरजिंस्क के स्थानीय प्रशासन ने ऐसे सभी नीले और हरे रंग के कुत्तों को जानवरों के डॉक्टर के पास इलाज के लिए भेज रखा है. जानवरों की यह क्लीनिक जेरजिंस्क से करीब एक घंटे की दूरी पर स्थित निज्नी नोवोग्रॉड में है.
केली ओ मारा ने कहा कि अभी तक रूस की सरकार की तरफ से अभी तक इन कुत्तों को लेकर किसी तरह का कोई कदम नहीं उठाया गया है. न ही केमिकल प्लांट पर किसी तरह की कार्यवाही की जा रही है. रूस में आवारा कुत्तों को लेकर भी किसी तरह की कल्याणकारी नीतियों को भी नहीं बनाया गया है. जबकि, इनकी आबादी रोकने के लिए क्रूरतापूर्ण तरीके अपनाए जाते हैं.
केली ने कहा कि कुत्तों की नसबंदी करने के तौर-तरीकों को रूस में बदलना होगा. आवारा कुत्तों को हादसों और अपराधों से बचाना जरूरी है. कुत्तों का नीले रंग में बदलना एक औद्योगिक हादसा और अपराध दोनों है. इसके लिए रूस की सरकार को कड़े कदम उठाने की जरूरत है. इस अपराध के लिए प्लांट के मैनेजर आंद्रे मिसलिवेट्स जिम्मेदार हैं. उनकी गैर-जिम्मेदाराना हरकत की वजह से कुछ साल पहले भी कुत्तों का रंग बदला था.
केली का मानना है कि यह इलाका बर्फीला है. यहां पर रसायन जल्दी खत्म नहीं होता. कुत्ते बर्फ में खेलते हैं. इसी खेलकूद के दौरान वो रसायनों से लिपटे बर्फ में गए होंगे, जिनकी वजह से उनका रंग नीला हो रहा है. अगर इसी तरह से चलता रहा तो इस इलाके के सारे कुत्तों का रंग नीला हो जाएगा. शहर के सभी आवारा कुत्तों के सेहत की जांच करानी चाहिए और प्लांट के बचे हुए रसायनों को साफ कराना होगा.रूस में कुत्तों का रंग हुआ नीला, 4 साल पहले भारत में भी हुई थी ऐसी घटना
इससे पहले साल 2017 में भारत के मुंबई में नीले रंग के कुत्ते नजर आए थे. ये कुत्ते उस नदी में नहाकर निकले थे, जिनमें एक स्थानीय फैक्ट्री द्वारा क्लोराइड भारी मात्रा में फेंका जाता था. हालांकि, बाद में फैक्ट्री को बंद कर दिया गया था. यह घटना मुंबई तालोजा इंडस्ट्रियल इलाके में स्थित कसादी नदी की है. घटना अगस्त के महीने में दर्ज की गई थी.