नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने देश के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता कानून लाने के लिए तैयारी शुरु कर दी है। इस कानून का केंद्रीय बिल आने वाले समय में किसी भी समय संसद में पेश किया जा सकता है। परीक्षण के तौर पर उत्तराखंड में इस कानून के बनाने की कवायद शुरू की गई है जिसमें एक कमेटी का गठन कर दिया है। इस कमेटी के लिए ड्राफ्ट निर्देश बिन्दु केंद्रीय कानून मंत्रालय ने ही दिए हैं। इससे साफ है कानून का ड्राफ्ट केंद्र सरकार के पास बना हुआ है।
सरकार के उच्चतर सूत्रों के अनुसार राज्यों में बने नागरिक संहिता के कानूनों को बाद में केंद्रीय कानूनों में समाहित कर दिया जाएगा। क्योंकि एक समानता लाने के लिए कानून का केंद्रीय होना जरूरी है। राज्यों में यह कानून को परीक्षण के तौर पर बनवाया जा रहा है। यह पहला मौका है जब सरकार ने पहली बार इस कानून के लाने के बारे में इतनी स्पष्टता से कहा है। सूत्रों ने कहा कि यह कानून अवश्य आएगा लेकिन कब और किस समय आएगा, यही सवाल है।
सरकार का इरादा था कि समान नागरिक संहिता पर राष्ट्रीय विधि आयोग से रिपोर्ट ले ली जाए लेकिन विधि आयोग के 2020 में पुनर्गठन होने के बावजूद कार्यशील नहीं होने के कारण राज्य स्तर पर कमेटियां बनाई जा रही हैं। कमेटी का फॉर्मेट विधि आयोग की तरह से ही है। इसमें सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रंजना देसाई, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज प्रमोद कोहली, पूर्व आईएएस शत्रुघ्न सिंह और दून विवि की वीसी सुरेखा डंगवाल शामिल हैं।
सूत्रों ने कहा कि यह कमेटी अन्य राज्यों मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश में भी बनाई जा सकती है। ये राज्य समान नागरिक संहिता के लिए पहले ही हामी भर चुके हैं। कमेटी के संदर्भ बिन्दु केंद्र सरकार ने दिए हैं।
यह पूछे जाने पर कि आदिवासियों के लिए इसे कैसे लागू करेंगे, क्योंकि उनके कानून उनकी रीतियों के अनुसार होते हैं। देश में 10 से 12 करोड़ आदिवासी रहते हैं जिनमें से 12 फीसद के आसपास पूर्वोत्तर में रहते हैं। वहीं कानून के आने से संयुक्त हिन्द परिवार को आयकर में मिलने वाली छूट समाप्त हो जाएगी। सूत्रों ने कहा कि हमें एक देश के रूप में आगे बढ़ना है तो थोड़ा एडजस्ट करना होगा।
एक समान कानून बनने से विभिन्न कानूनों का जाल खत्म होगा और इससे देश में करीब 20 फीसदी दीवानी मुकदमे स्वतः: समाप्त हो सकते हैं। क्योंकि सभी नागरिकों पर आईपीसी की तरह से यह कानून लागू होगा।
कानून मंत्री: इस बारे में कानून मंत्री किरण रिजीजू ने कहा कि समान नागरिक संहिता लाना भाजपा के मुख्य एजेंडों में से एक रहा है और इसे हर हाल में पूरा किया जाएगा। इस बारे में तैयारी चल रही है, यह कानून जरूर लाया जाएगा।
समान नागरिक संहिता से देश में सभी नागरिकों के लिए विवाह, विवाह की उम्र, तलाक, पोषणभत्ता, उत्तराधिकार, सह-अभिभावकत्व, बच्चों की कस्टडी, विरासत, परिवारिक संपत्ति का बंटवारा, वसीयत, चैरिटी-दान आदि पर एक समान कानून हो जाएगा चाहे वे किसी भी धर्म या संप्रदाय या मत से हों।
अभी ये कानून हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिए अलग अलग हैं जो उनके धार्मिक ग्रंथों पर आधारित हैं। हिन्दुओं का कानून वेद, उपनिषद, स्मृति, न्याय के आधुनिक मत, बराबरी आदि पर आधारित हैं जबकि मुसलमानों का कानून कुरान, सुन्नाह, इज्मा और कियास पर आधारित हैं। इसी प्रकार ईसाइयों का कानून बाइबल, रूढियां, तर्क और अनुभव के आधार पर बने हैं। पारसियों के कानून का आधार उनके धार्मिक ग्रंथ जेंद एवेस्ता और रूढियां हैं।
मुस्लिम ला में बहुविवाह (चार) की छूट है लेकिन अन्य धर्मो में एक पति एक पत्नी का नियम कड़ाई से लागू है। बांझपन या नपुंसकता जैसा उचित कारण होने पर भी हिंदू, ईसाई, पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है और आईपीसी की धारा 494 में 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है। मुस्लिम में विवाह के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है, 9 वर्ष तक की कन्या से विवाह किया जा सकता है। जबकि अन्य धर्म में यह उम्र 21 वर्ष है।
वहीं पारसी आपसी सहमति से विवाह विच्छेद नहीं कर सकते। संपत्ति के कानून मुसलमानों में पुरुष के हक में झुके हैं जबकि हिन्दुओं में स्त्री को बराबर के हक हैं। मुसलमानों में वसीयत भी एक तिहाई संपत्ति की की जा सकती है वह भी मौखिक। तलाक के बाद मुस्लिम महिला को सीमित समय तक ही गुजारा भत्ता दिया जाता है।