यूपी। लंबे समय तक चले अयोध्या के मंदिर मस्जिद विवाद का अभी पटाक्षेप नहीं हुआ है. बाबरी विध्वंस को लेकर जिन लोगों को आरोपी बनाया गया था उन को बरी करने को लेकर एक बार फिर सुनवाई होगी और एक बार फिर फैसला आएगा. बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे हाजी महबूब व सैयद अखलाक अहमद की तरफ से इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में यह रिवीजन रिट याचिका दाखिल की गई है. हालांकि यह रिट याचिका कोई नई नहीं है इसको दाखिल किए हुए लगभग 6 माह बीत चुके हैं. अब इसको लेकर चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि 18 जुलाई 2022 को इसकी सुनवाई होने वाली है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि राम मंदिर आंदोलन के दौरान बाबरी विध्वंस को लेकर तत्कालीन फैजाबाद जनपद के राम जन्मभूमि थाने में अलग-अलग मुकदमे दर्ज किए गए थे. इस मुकदमे में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी समेत भारतीय जनता पार्टी के कई बड़े नेताओं का नाम थे. यूपी पुलिस से यह पूरा मामला सीबीआई को ट्रांसफर हो गया था और सीबीआई कोर्ट में ही इस मामले की सुनवाई हुई थी. जिसके बाद सीबीआई कोर्ट ने तमाम आरोपियों को बरी कर दिया था.
हिंदू पक्ष की तरफ से दलील दी गई थी कि दरअसल यह राम मंदिर था और जीर्णोद्धार के लिए जर्जर मंदिर को गिराया गया था. वहीं इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से हिंदुओं के पक्ष में फैसला आया था और उसी के क्रम में भव्य श्री राम जन्म भूमि मंदिर का निर्माण हो रहा है. इसी फैसले में मस्जिद के लिए अयोध्या में ही मस्जिद के लिए जमीन देने की बात कही गई थी जो अयोध्या प्रशासन ने रौनाही थाने के पीछे भूमि उपलब्ध करा दी है और उस पर अयोध्या विकास प्राधिकरण से मस्जिद निर्माण के लिए नक्शा स्वीकृत करने की कार्रवाई चल रही है. बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे हाजी महबूब ने सैयद अखलाक अहमद की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में एक रिवीजन रिट याचिका दाखिल की है. इस याचिका का सीरियल नंबर 806 है. जबकि क्रिमिनल रिवीजन नंबर 26/2021 हाजी महबूब एंड अदर्श वर्सेज UP सरकार थ्रू प्रमुख सचिव यूपी फ़ाइल किया गया है. हाजी महबूब और अन्य की तरफ से रफत फारुकी, नजम जफर, खलीक अहमद मुक़दमे की पैरवी करने वाले है तो जबाब में शिव प्रासाद शुक्ला इनके विपक्ष में खड़े दिखाई देंगे.
बाबरी विध्वंस का मामला सबसे पहले तत्कालीन फैजाबाद जनपद के राम जन्मभूमि थाने में दर्ज हुआ. शुरुआती दौर में यूपी पुलिस इसकी जांच कर रही थी लेकिन बाद में यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया. लंबी जांच पड़ताल के बाद लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने इस घटना को पूर्व नियोजित मानने के बजाय आकस्मिक हुई घटना माना था. इसीलिए इस मामले में आरोपी बनाए गए सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था.