महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की संवैधानिक वैधता पर कल आ सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य में मराठा समुदाय को शिक्षा व रोजगार में दिए गए
महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य में मराठा समुदाय को शिक्षा व रोजगार में दिए गए आरक्षण की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को फैसला सुना सकती है। इस आरक्षण को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
बता दें, महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था। इसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। इसमें यह भी सवाल था कि क्या 1992 के ऐतिहासिक इंद्रा साहनी फैसले (मंडल फैसले के तौर पर चर्चित) पर भी वृहद पीठ द्वारा पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है। इस फैसले के तहत नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 50 फीसदी आरक्षण की अधिकतम सीमा तय की थी।
शीर्ष अदालत ने आठ मार्च को कहा था कि वह मुद्दों पर विचार करने का प्रस्ताव करती है। इनमें यह भी शामिल होगा कि क्या इंदिरा साहनी मामले को वृहद पीठ को संदर्भित किए जाने या उस पर पुनर्विचार की जरूरत है खास तौर पर बाद में हुए संवैधानिक संशोधनों, फैसलों और समाज के बदलते सामाजिक ताने-बाने के मद्देनजर।
इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने जून 2019 में मराठा आरक्षण कानून को बरकरार रखते हुए कहा था कि 16 फीसदी आरक्षण न्यायोचित नहीं था। रोजगार में 12 प्रतिशत तथा दाखिलों में 13 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए। इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। विभिन्न समुदायों व आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मिलाकर महाराष्ट्र में करीब 75 फीसदी आरक्षण हो गया है।