'टू-फिंगर टेस्ट' को सुप्रीम कोर्ट ने बताया अवैज्ञानिक, सुनाया अहम फैसला

Update: 2022-11-02 02:10 GMT

दिल्ली। रेप और यौन हिंसा के मामलों की जांच के लिए होने वाले 'टू-फिंगर टेस्ट' को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने इसे 'अवैज्ञानिक' बताया है. साथ ही ये भी कहा है कि पीड़िताओं का टू-फिंगर टेस्ट करना उन्हें फिर से प्रताड़ित करना है. अदालत ने मेडिकल की पढ़ाई से भी टू-फिंगर टेस्ट हटाने को कहा है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने ये फैसला झारखंड सरकार की याचिका पर सुनाया है. झारखंड हाईकोर्ट ने रेप और मर्डर के आरोपी शैलेंद्र कुमार राय उर्फ पांडव राय को बरी कर दिया था. झारखंड सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए शैलेंद्र राय को दोषी ठहराते हुए उसे उम्रकैद की सजा सुनाई है.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि ये धारणा गलत है कि सेक्सुअली एक्टिव महिला के साथ रेप नहीं हो सकता. अदालत ने टू-फिंगर टेस्ट पर फिर से रोक लगा दी और चेतावनी दी कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे दोषी ठहराया जाएगा.

- टू-फिंगर टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो उंगलियां डाली जाती हैं. इससे डॉक्टर ये पता लगाने की कोशिश करते हैं कि पीड़िता सेक्सुअली एक्टिव है या नहीं.

- इस टेस्ट के जरिए प्राइवेट पार्ट के बाहर एक पतली झिल्ली को जांचा जाता है, जिसे हाइमन कहते हैं. अगर हाइमन होता है तो पता चलता है कि महिला सेक्सुअली एक्टिव नहीं है. लेकिन हाइमन को नुकसान पहुंचा होता है तो इससे महिला के सेक्सुअली एक्टिव होने की बात सामने आती है.

- हालांकि, ये धारणा पूरी तरह सही नहीं है. मेडिकल साइंस में भी ऐसा सामने आ चुका है कि खेलकूद और दूसरे कारणों से भी हाइमन को नुकसान पहुंच सकता है.

- टू-फिंगर टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में ही रोक लगा दी थी. लेकिन उसके बावजूद ये होता रहा है. झारखंड में शैलेंद्र कुमार राय के मामले में भी हाईकोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट के आधार पर ही उसे बरी कर दिया. 

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