तिरुपति मंदिर की पूजा पद्धति में हस्तक्षेप से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, कह दी ये बड़ी बात

Update: 2021-11-16 10:30 GMT

नई दिल्ली: तिरुपति बालाजी मंदिर की पूजा पद्धति में दखल देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिर में पूजा कैसे हो, ये तय करना अदालत का काम नहीं है क्योंकि मंदिर में पूजा के दौरान नारियल कैसे तोड़ें? आरती कैसे करें? ये अदालत तय नहीं कर सकती. मंदिरों के अनुष्ठानों में संवैधानिक अदालतें दखल नहीं दे सकतीं.

CJI एनवी रमणा ने सुनवाई के दौरान कहा कि यदि कोई कमी है तो हम उन्हें इसे ठीक करने के लिए कह सकते हैं, लेकिन हम दिन-प्रतिदिन पूजा करने के तरीके में हस्तक्षेप नहीं कर सकते. CJI ने जोर देकर कहा कि हम एक बार फिर साफ कहना चाहते हैं कि पूजा की रस्मों में अदालतें कैसे हस्तक्षेप कर सकती हैं? पीआईएल के नाम पर ये एक पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है.
सुनवाई के दौरान जस्टिस एएस बोपन्ना ने कहा कि यह मामला एक रिट याचिका में तय नहीं किया जा सकता. याचिकाकर्ता ने कहा कि पूजा और उपासना का यह मौलिक अधिकार है. इस पर जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि निजी उपासना का अधिकार तो है लेकिन मंदिर में पूजा पद्धति कैसी होनी चाहिए यह मौलिक अधिकार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में CJI एनवी रमणा ने फैसले में कहा कि मांगी गई राहत के लिए पूजा अनुष्ठानों के दिन-प्रतिदिन के मामलों में सुधार की जरूरत हो सकती है, लेकिन अदालती हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है. ऐसे मामले में संवैधानिक अदालतें दखल नहीं दे सकतीं.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि कोई प्रशासनिक कमी है तो मंदिर प्रशासन को ज्ञापन दिया जाए. साथ ही यह भी निर्देश दिया कि प्रशासन 8 हफ्ते में उसका जवाब दे. पूजा पद्धति के मामले में याचिकाकर्ता सिविल कोर्ट जा सकता है.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में तिरुपति बालाजी में पूजा को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई उस समय रोचक हो गई जब CJI एनवी रमणा ने याचिकाकर्ता से तेलुगू में बात करनी शुरू कर दी थी. इससे पहले CJI ने याचिकाकर्ता सिवरा दादा से अंग्रेजी में कहा था कि आप भगवान बालाजी के भक्त हैं. बालाजी के भक्तों में धैर्य होता है, लेकिन आपके पास धैर्य नहीं है. आप बार-बार सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से संपर्क करते हैं और हर बार रजिस्ट्री को याचिका सूचीबद्ध करने की धमकी देते हैं. आप कहते हैं कि मैं मर जाऊंगा, अगर केस नहीं लगाया तो. आप इसे इस तरह नहीं कर सकते. इस संस्थान की पवित्रता बनाए रखें.
इस पर याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह मौलिक अधिकारों का मामला है. वहां पूजा कैसे हो रही है, इस पर सवाल है. CJI ने कहा कि क्या हम पूजा में हस्तक्षेप कर सकते हैं और इसे कैसे आयोजित किया जाए? पूजा में कितने लोग शामिल होंगे यह एक मौलिक अधिकार है? क्या यह अदालत इस बात पर ध्यान दे कि पूजा कैसे की जाती है?
CJI ने कहा है कि मैं, मेरे भाई, मेरी बहन, हम सब बालाजी के भक्त हैं. हम सभी पूजा करते हैं और उम्मीद करते हैं कि देवस्थानम परंपराओं का ख्याल रखेगा और सभी अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों का पालन करेगा, लेकिन ऐसा नहीं किया जाना चाहिए कि रजिस्ट्री पर दबाव बनाया जाए. दरअसल, इस याचिका में मंदिर में पूजा पद्धति सही से ना होने का आरोप लगाया गया है. इस बेंच में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली भी हैं जो कि उत्तर भारतीय हैं. 


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